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गाथा-२५
कहते हैं, एक सम्यक्त्व प्राप्त किये बिना.... उसकी अंक की बात क्या करना? अनादि काल से अनन्त काल में, भूतकाल में, हाँ! सम्मत्त ण लध्धु - अभी तक इसने सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया। इसका क्या अर्थ किया? कि नौवें ग्रैवेयक अनन्त बार गया, उसके परिणाम कितने थे? त्याग के, वैराग्य के, बाहर के साधन के, पंच महाव्रत के.... हजारों रानियाँ छोड़ी, हजारों रानियाँ छोड़कर त्याग किया? अट्ठाईस मूलगुण अनन्त बार पालन किये – ऐसे अट्ठाईस मूलगुण पालन से सम्यक्त्व नहीं प्राप्त हुआ। अब तुझे साधारण शुभराग से सम्यक्त्व पायेगा ऐसा कहना है ? समझ में आया? इस भगवान के अखण्डानन्द के आदर बिना सम्यक्त्व नहीं पाया। अमुक से नहीं आया - ऐसा नहीं है, यह कहते हैं। क्या कहा? नौवें ग्रैवेयक आदि अनन्त भव किये, भगवान! भाई ! तेरी नजर नहीं पहुँचती, क्या हो? इस तरह आदि नहीं होती, आदि नहीं होती, आदि नहीं होती। आहा...हा...! समझ में आया?
अभी कोई कहता था, नहीं वह ? पन्द्रह दिन पहले यहाँ कोई नाटक होता था न? नहीं? दो लड़के जाते थे। एक दस वर्ष का लड़का 'जिथरी'.... उसको चाँदी के बटन थे, वे ले लिये और डाल दिया कुएँ में । वहाँ कुएँ में पानी नहीं, पत्थर थे और एक बड़ा फणधर सर्प बैठा था। कहो? दो चार घण्टे, डेढ़ बजे निकला.... चिल्लाये... चिल्लाये... हाय...! ऐसे नहीं निकला जाता। सर्प के सामने चार घण्टे-पाँच घण्टे शोर मचाये। प्रातः काल हुआ (तब) कोई निकला होगा (उसे लगा) इसमें लड़का लगता है। चाँदी के बटन होंगे और साथ में निकले होंगे। अब ऐसे छोटे कुएँ में.... यह चौरासी का बड़ा कुआ है। (इसका भय नहीं है।) आहा...हा... ! तेरे मिथ्यात्व भाव ने अनन्त बार कुएँ में डाला। समझ में आया? काले नाग जैसा मिथ्यात्वभाव.... इस पुण्य से धर्म होगा और क्रिया से धर्म होगा और राग से लाभ होगा (– ऐसा माना)। भगवान के बिना सम्यक्त्व नहीं होता - ऐसा तूने माना नहीं। राग के बिना और अमुक के बिना नहीं होता – ऐसा मानकर तूने अनन्त भव किये हैं -ऐसा कहते हैं। समझ में आया?
__पर सम्मत्त ण लध्धु ऐसे भव किये और सम्यक्त्व नहीं पाया? इन भव के कारण का सेवन किया और सम्यक्त्व नहीं पाया। तब इसका कारण कि जिस भाव के कारण से