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योगसार प्रवचन (भाग-१)
ऐसे सम्यग्दर्शन के बिना नरक के भव अनन्त किये, स्वर्ग के (अनन्त किये)। स्वर्ग में भी दस हजार वर्ष के अनन्त भव किये। वहाँ भी कम से कम दस हजार वर्ष की आयु है, हाँ! भवनपति, व्यन्तर में.... एक समय अधिक, दो समय अधिक... ऐसे अनन्त भव। जाओ, वैमानिक स्वर्ग.... एक सागर, दो सागर – इनके बीच के जितने समय हैं, उतने अनन्त भव। नौवें ग्रैवेयक तक इकतीस सागरोपम में अनन्त भव किये। क्यों?
चउरासीलक्खह फिरिउ काल अणाइ अणंतु अनन्त अर्थात् उनका यह शब्द आया, देखो! यह अनन्त काल भटका। भूतकाल में भटका, उसकी बात कहनी है न? यहाँ कहीं भविष्य की बात कहाँ है? भले ही अर्थ इन्होंने किया है। समझ में आया? सम्यक्त्व के बिना घूम सकता है। ऐसा करके अनन्त का अर्थ किया है। यह तो अनादि काल में, अन्त नहीं - ऐसे काल में अनन्त भव तूने किये हैं – ऐसा यहाँ तो कहना है। आहा...हा...! अरे, चींटी के अनन्त भव, कौवे के अनन्त भव, कसाई के अनन्त भव, शत्रु के अनन्त भव.... आहा...हा...!
यह बिजली का अभी नहीं कहा? मुम्बई में । ऐसे त्रास लोगों को हो जाते हैं परन्तु ऐसे भव तो अनन्त किये हैं। तुझे ऐसा लगता है कि इसे ऐसा (हुआ) । तूने ऐसे अनन्त भव किये हैं। समझ में आया? अनन्त बार घानी में पिला, बिच्छू के कठोर डंक में अनन्त बार मर गया। हाय... हाय...! मर गया। ऐसे मनुष्य के.... ऐसे पशु के (अनन्त भव किये)। भाई तुझे पता नहीं है। चौरासी लाख के अवतार में कुछ बाकी नहीं है; एक सम्यग्दर्शन बिना (कुछ बाकी नहीं है), देखो! क्या कहा?
पर सम्मत्त ण लध्धु चौरासी के अवतार स्वर्ग के किये उसका क्या अर्थ हुआ? नौवें ग्रैवेयक अनन्त बार गया तो कैसे पुण्य से जाता है ? पाप से नौवें ग्रैवेयक जाता है ? पाप करके नौवें ग्रैवेयक, इकतीस सागर जाता है? पंच महाव्रत ऐसे हों, शुक्ललेश्या ऐसी हो, ऐसी शुक्ललेश्या, पंच महाव्रत, ब्रह्मचारी.... ऐसे परिणाम द्वारा नौवें ग्रैवेयक अनन्त बार गया (परन्तु) सम्यक्त्व नहीं पाया। ऐसे परिणाम से सम्यक्त्व नहीं पाया, वह दूसरे परिणामों से सम्यक्त्व पायेगा? ऐसा यहाँ कहते हैं । आहा...हा...!
वह नहीं, यहाँ तो भटकता है, अनादि की बात है न? समझ में आया?