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गाथा-२४
जहर जैसा मिला, शरीर । कोई उसका हाथ पकड़े तो अग्नि लगे। विषय-वासना से हाथ पकड़े तो अग्नि लगे, फिर उसके पिता ने कोई ऐसा साधारण भिखारी निकला होगा, युवा व्यक्ति होगा, मक्खियाँ भिनभिनाती हुईं और भिखारी.... उसे अन्दर में ऐसा (लगा कि) इससे विवाह करा दो। फिर बड़े-बड़े करोड़पति हैं परन्तु उन्हें किसलिए बुलाते हैं ? आओ...आओ! सेठ बुलाते हैं... परन्तु किसलिए? घर में दामाद बनाने को बुलाते हैं। अन्दर आया, वहाँ वे गन्दे कपड़े थे न? लकड़ी, टोपी, डण्डा, कटोरा... सेठ ने हुक्म किया कि डाल दे....डाल दे इन्हें...उन्हें डालने लगे तो यह चिल्लाने लगा। इसे ऐसा लगा कि अर...र... ! मेरा इतना भी जाता है। यह तो मिले तब सही.... परन्तु अपनी पुत्री का विवाह करते थे, विवाह किया परन्तु विवाह करके चला गया। क्योंकि अग्नि जैसा लगे तो भाग गया। तो फिर यह एक गरीब मनुष्य था। युवा व्यक्ति निकला (उसे) बुलाया। नौकर से कहा इसे ले जा, सेठ बैठे थे, वहाँ इस फूटे बर्तन और सकोरा डाल दो। हम अब तो यहाँ सोने के चाँदी के थाल में जीमानेवाले हैं। डालते (थे तब) चिल्लाने लगा। तो फिर सेठ ने ऐसा देखा क्यों चिल्लाता है ? उसे विश्वास नहीं आता। इन्हें रखो कौने में, इन्हें इसके कौने में रखो। देखो, यह लक्षण पहले से.... इसलिए फिर जहाँ कन्या का विवाह किया, अच्छे कपड़े पहनाये, लाख-लाख रुपये के कपड़े... परन्तु ऐसा हाथ जहाँ पकड़ा, अग्नि... अग्नि... हाय... हाय... ! अब? रात्रि में जब पलंग पर सोने गया, वहाँ करवट जहाँ ऐसा करे वहाँ अग्नि.... वह सो रही थी वहाँ भगा... कपड़े-वपड़े उतारकर हाँ, नहीं तो वापस पकड़ेंगे। सुना है ? ज्ञातासूत्र में यह आता है। वह सब छोड़ दिया, वापस उस कौने में रखा था, उसे लेकर भाग गया।
इसी प्रकार यह अनादि का भिखारी, भगवान बुलाते हैं कि ले... तुझे अनुभव की परिणति से विवाह कराते हैं, चल... चल... परन्तु इसे (लगता है कि) मेरे विकल्प चले जायेंगे और मेरा व्यवहार चला जायेगा। अरे... ! नहीं जायेगा, सुन न अब । मलूकचन्दभाई! भाईसाहब ! मेरे व्यवहार के उस विकल्प का क्या करना? व्यवहार से प्राप्त होता है वह विकल्प? भगवान कहते हैं भाई! रख... रख... रख... परन्तु अब उसे रखकर उसकी दृष्टि छोड़कर यहाँ आ। आने की दरकार है नहीं, उस पर प्रेम है। वहाँ प्रेम को छोड़ा नहीं