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गाथा - २४
आया ? आहा....हा... ! यह क्या करना धर्मी को ? - ऐसा कहते हैं । यह तो बहुत संक्षिप्त
कर दिया है।
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इसे करना यह। भगवान असंख्य प्रदेश में निश्चय से विराजता है, अनन्त गुण का रस लेकर, अनन्त गुण की शक्ति सामर्थ्य लेकर (विराजमान है)। ऐसे भगवान के सम्मुख देख, उसे जान ! बस ! उसे जानना इसका नाम मोक्ष का मार्ग है। एकाग्र हो, लहु ।
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मुमुक्षु - इसमें चारित्र नहीं आया ?
उत्तर - चारित्र नहीं आया ? क्या आया ? यह वस्तु... यह जान अर्थात् जाना, उसकी श्रद्धा और उसमें स्थिरता की। तीनों जानने में आ गये। यह वस्तु - ऐसा जाना, वह किस प्रकार जाना ? स्थिर हुए बिना जाना ? और श्रद्धा किये बिना जाना ? और जाने बिना श्रद्धा ? जाने बिना स्थिरता ? समझ में आया ?
यह चारित्र क्या है ? यहाँ तो इतना कहा। एहउ अप्पसहाउ मुणि भव तीरु लहु पावहु। देखो! पाठ क्या है ? योगसार, योगीन्द्रदेव ऐसा कहते हैं कि ऐसा भगवान आत्मा असंख्य प्रदेशी निश्चय से है, उसे तू अप्पसहाउ आत्मा के स्वभाव को जान । जान यही भवतीरु लहु पावहु । इसमें तो एक ही शब्द है। समझ में आया ? यह जानने का अर्थ कि आत्मा पूर्णानन्द की ओर जहाँ जानने को गया, वहाँ स्थिरता भी हुई, श्रद्धा भी हुई। पूरा आत्मा पूर्णानन्द का नाथ अनन्त गुण का पिण्ड प्रभु जहाँ ज्ञान में ज्ञात हुआ, उसे कौन सा बिना बाकी रहेगा। समझ में आया ? पूरी वस्तु पूर्ण, उसके सन्मुख में झुकने पर, ढलने पर इस अनन्त गुण का अंश, पिण्ड असंख्य प्रदेश में, किस गुण के अंश का अंकुर फूटे बिना रहेगा ? समझ में आया ?
मुमुक्षु - कथन में तो वर्तमान सब बात की है, संक्षिप्त में सब समझ जाये ।
उत्तर - वह समझ जायेगा - ऐसा ही (शिष्य) यहाँ लिया है। यह सुननेवाला, मोक्ष चाहता है, वह कैसा होगा ? समझ में आया ? जिसे आत्मा का हित करना है - ऐसा शिष्य यहाँ लिया है। वही समझने का आकाँक्षी है। दूसरे कब आकाँक्षी हैं ? समझ में आया? सब तो बहुत थोड़े रखे हैं । आहा... हा... !