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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
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कहलाये..... ? एक पर्दे में महिला होती है न ? भले ही ठिकाने बिना की (होवे परन्तु उसे) देखने का मन करता है । कहाँ रहती है ? ए... उसमें रहती है, उस बंगले में... जरा सा सिर से पर्दा हटकर बाहर निकले तो कहे देखो यह निकले ! हैं ? ऊपर.... पर्दा जरा हट गया तो यह रानी साहब निकले .... ए... रानी साहब निकले। क्या है ? हो तो भी सब समझने जैसा है । हैं ? रानी साहब निकले, रानी साहब निकले... भावनगर दरबार की रानी पहली बार निकली, तब लोगों को लगा क्या निकले ? पहली बार पर्दा छोड़ा है न ? जब प्रथम पर्दा छोड़ा तब मोटर में निकले थे, वह गाँव उछल गया था। रानी साहब ने आज पर्दा छोड़ा, रानी साहब ने पर्दा छोड़ा.... उनकी चमड़ी को देखने निकला...... भगवान को देखने तो निकल एक बार ! पर्दा छोड़ दे । राग की विकल्प की एकता का पर्दा छोड़ दे। भगवान पूर्णानन्द प्रभु अन्दर में विराजमान है । आहा... हा... ! अरे... परन्तु उसे बात सुनना... क्या यह होगा ? मैं ऐसा होऊँगा ? इसे अतिरेक जैसा लगता है, अतिरेक जैसा लगता है। जो वस्तु की स्थिति है.... उसे क्या अतिरेक कहलाता है ? अतिश्योक्ति (लगती है) । आहा... हा... !
कहते हैं यह तेरे असंख्य प्रदेश सत्ता प्रभु भगवान है। समझ में आया ? जो वस्तु होती है, उसे कोई भी आकार होता है। आत्मा वस्तु है या नहीं ? तो आकार होगा या नहीं ? वस्तु है या नहीं ? सत्ता है या नहीं ? सत्ता को आकार होता है या नहीं ? सत्ता को क्षेत्र है या नहीं? ऐसा सिद्ध करते हैं। ए... प्रवीणभाई !
यह वस्तु है, देखो ! यह वस्तु है या नहीं ? तो इसकी सत्ता है या नहीं ? है न ? तो इसका क्षेत्र है न ? कितना ? कि इतना । जिसका अस्तित्व है, उसे क्षेत्र होता है या नहीं ? जिसका अस्तित्व है, उसे क्षेत्र होता है या नहीं ? वैसे ही आत्मा का अस्तित्व है तो उसका क्षेत्र है या नहीं ? असंख्य प्रदेश उसका स्थल - क्षेत्र है। एक-एक प्रदेश पूर्णानन्द, पूर्ण निर्मलानन्द से भरपूर है । जिसमें अनन्त आनन्द पके - ऐसा उसका असंख्य क्षेत्र है । इस असंख्य क्षेत्र का तेरा क्षेत्र ऐसा है कि इसमें अनन्त केवलज्ञान, अनन्त आनन्द पके वह क्षेत्र है। घास- फूंस पके ऐसा यह क्षेत्र नहीं है । आहा... हा...! अनाज होता है, घास-फूंस सामान्य जमीन में होता है और ऊँचे चावल होते हैं न, ऊँची जमीन में होते हैं ! तो यह तो