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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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अवसर आया न, केवलज्ञान प्राप्त करने का अवसर है। आहा...हा...! समझ में आया? संसार का संक्षिप्त, संसार का संक्षिप्त, मोक्ष का विस्तार । आहा...हा...!
सिद्धान्त सार यह है। देखो न पाठ में तो कैसा शब्द रखा है ! चार अनुयोग के सिद्धान्त का सार इस संसार का अभाव और मोक्ष की उत्पत्ति है। ऐसा आत्मा परमात्मा समान हूँ, यह जाने बिना इसे स्वभाव का आश्रय नहीं होता और अल्पज्ञता तथा राग का आश्रय नहीं मिटता तो सर्वज्ञ और वीतराग नहीं होता। आहा...हा...! यह (मात्र) बात नहीं, यह वस्तु है। समझ में आया? भगवान आत्मा एक समय में जैसे परमेश्वर जिनेन्द्र तीन लोक के नाथ अनन्त गुण की समृद्धि से व्यक्तपने प्रगट है – ऐसे जो परमात्मा के झुण्ड सिद्धनगरी में विराजमान हैं... समझ में आया? सिद्धनगर में अनन्त सिद्ध विराजमान हैं – ऐसा ही भगवान आत्मा.... समझ में आया? इसके बाद कहेंगे या नहीं वह? असंख्य प्रदेश.... कहाँ रहते हैं? वह क्षेत्र लेंगे, फिर २३ में लेंगे। २३ में है, २४ में एक है, वह फिर क्षेत्र बतलाना है, इन्होंने। सब गुण कहाँ रहे हैं और इतना तू है यह बताना है। आहा...हा...!
भाई! तू नजर को जरा बाहर से समेट । सर्वज्ञ परमात्मा हुए, उन्होंने बाहर से संकोच किया और अन्दर का विस्तार किया था। समझ में आया? इतनी अनुभव की दृष्टि हुई कि मैं तो पूर्ण अभेद परमात्मा ही हूँ, मुझमें और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं है। इस प्रकार अन्तर नहीं है - ऐसा करनेवाले को अन्तर मिट जायेगा। समझ में आया? आहा...हा...! यह तो योगसार है। सन्त, दिगम्बर सन्तों का कोई भी शास्त्र लो, छोटी गाथा लो, बड़ी गाथा लो, कुछ (भी लो) परन्तु सन्तों की कथन शैली अलौकिक है। सनातन वीतराग परमेश्वर तीन लोक के नाथ ने जो धर्म कहा, उसे दिगम्बर सन्तों ने धारण करके ढिंढोरा पीटा। धर्म धुरन्धर धर्मात्मा.... देखो। योगीन्द्रदेव पुकार.... पुकार... (करते हैं)। अरे! आत्मा ! परमात्मा जैसा... जिन और तुझमें अन्तर डालता है ? भेद करता है? भेद करेगा तो भेद कब छूटेगा? समझ में आया?
जो जिनेन्द्र है, वही यह आत्मा है - ऐसा मनन करो। मैं रागवाला, निमित्तवाला अल्पज्ञवाला – ऐसा मनन नहीं करो। आहा...हा...! अरे... मैं अल्पज्ञ, अरे... ऐसी