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________________ १६४ गाथा - २१ है तो रहित हो, इसलिए बतलाना है। समझ में आया ? कर्म का विकार का सहितपना बतलाने का हेतु यह है कि वस्तु को वर्तमान पर्याय से सम्बन्ध है, वस्तु के स्वभाव में उसका सम्बन्ध नहीं है, यह बतलाने के लिये यह बात की है। समझ में आया ? करणानुयोग में भी सार तो यह है कि ऐसे परिणाम ऐसे हों, शुभ-अशुभ, अशुद्ध... समझ में आया ? उसमें निमित्त कौन होता है ? एक में - शुद्ध में निमित्त का अभाव होता है, यह बतलाकर बताना है तो आत्मा वीतराग परमात्मा के समान है। परमात्मा द्वारा कथित तत्त्व परमात्मा होने के लिये ही कथन होता है। सर्वज्ञ और वीतराग होकर फिर कथन आया, उसका अर्थ क्या हुआ ? कि तू सर्वज्ञ और वीतराग हो, इसके लिए कथन आया है । आहा... हा...! अतः चारों अनुयोगों में यह कथन उसके सार में आता है । कहो ! भगवान आत्मा परमात्मा के समान है, भाई ! हमने सहित कहा है, वह रहित बताने के लिये (कहा है) । उसका सहितपना वस्तु में नहीं है, यह बतलाने के लिये सहितपना बतलाया है। समझ में आया ? तात्पर्य तो वीतरागता है या नहीं ? तो वीतरागता कब आ है ? ज्ञानावरणीय में ज्ञान को रोका - ऐसा बतलाया, अर्थात् ? कि भाई ! तू जब ज्ञान की अवस्था हीन करता है, तब ज्ञानावरणीय निमित्त है । यह बतलाने का हेतु - उस हीनता की दशा और निमित्तपने का आश्रय छोड़ । रखने के लिये कहा है ? वीतरागता बतलाने के लिये कहा है या परमात्मा होने के लिये कहा है ? या वहाँ रुकने के लिये कहा है ? पूजा करने के लिये कहा है ? मुमुक्षु - अन्तराय कर्म की पूजा, ज्ञानावरणीय कर्म की पूजा....... उत्तर - अनतराय की पूजा भी क्या ? अल्पज्ञ परिणमन के आदर के लिये नहीं कहा। अल्पज्ञ दशा तेरी तुझसे होती है, अल्प दर्शन होता है, अल्प वीर्य होता है, यह बताकर पूर्णानन्द अखण्ड परमात्मा के समान आत्मा है, और मैं परमात्मा हुआ तो तू हो सके ऐसा है । यह बतलाने के लिये करणानुयोग में कथन है । क्या कहते हैं ? देखो न ! जो सो अप्पा मुहु जो मोक्षतत्त्व प्राप्त भगवान हैं – ऐसा आत्मा को जान । लो ! कोई कहे, हमें मोक्ष का क्या काम है ? समझ में आया ? सर्वज्ञ भगवान सर्वज्ञ की जाने, हमें क्या काम है ? आहा... हा... ! इसका अर्थ क्या है ? सर्वज्ञ परमात्मा एक समय
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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