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आत्मा ही जिन है, सही सिद्धान्त का सार है जो जिणु सो अप्पा मुणहु इह सिद्धंतहु सारु। इह जाणिविणा जोयईहु छंडहु मायाचारु ॥२१॥ जिनवर सो आतम लखो, यह सैद्धान्तिक सार।
जानि इह विधि योगिजन, तज दो मायाचार ॥ अन्वयार्थ – (जो जिणु सो अप्पा मुणहु ) जो जिनेन्द्र है वही यह आत्मा है ऐसा मनन करो (इह सिद्धंतहु सारू) यह सिद्धान्त का सार है। (इह जाणेविण) ऐसा जानकर (जोयईहु ) हे योगीजनों! (मायाचारु छंडहु) मायाचार छोड़ो।
वीर संवत २४९२, ज्येष्ठ कृष्ण १२,
गाथा २१ से २३
बुधवार, दिनाङ्क १५-०६-१९६६ प्रवचन नं.९
२१... आत्मा ही जिन है, सही सिद्धान्त का सार है। देखो, इस गाथा में, चारों ही अनुयोगों का सार क्या है ? वह यह बतलाते हैं । सर्व सिद्धान्त का सार.... सर्वज्ञ के मुख में से जो दिव्यध्वनि (निकली); सर्वज्ञ वीतराग होने के बाद दिव्यध्वनि निकली, उस दिव्यध्वनि का सार क्या है ? वह इसमें कहा जाता है।
जो जिणु सो अप्पा मुणहु इह सिद्धंतहु सारु। इह जाणिविणा जोयईहु छंडहु मायाचारु ॥२१॥
जो जिनेन्द्र है, वही यह आत्मा है - ऐसा मनन करो। भगवान की वाणी में ऐसा आया, चारों अनुयोगों में – प्रथमानुयोग में भी यह आया। भले ही कथानुयोग में इस आत्मा को शुद्ध आत्मा का साधन करते हुए, उसे रागादि कितने रहे और कहाँ स्वर्ग में