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गाथा-२०
आहा...हा... ! टेवाई गया है न टेवाई।देख तो सहीं, बकरे के झुण्ड में है। तेरी आँखें चमड़ी है, ऐसा देखा है कभी? ऐसे-ऐसे देखा किया है। यह बकरा है ऐसा मैं हूँ बकरे के झुण्ड में पड़ा हूँ, दहाड़ आयी तो त्रास नहीं हुआ। सुन तो सही ! मेरी जाति का है। दहाड़ आयी
और त्रास नहीं हुआ और इन बकरों को त्रास हुआ। जाति में अन्तर है या नहीं? इतना पता नहीं पड़ता? तब कहता है पूरा शरीर फर्क है या नहीं? तो ऐसा किस प्रकार देखे? पानी में देख, हाँ.... ! मेरा मुँह इनके जैसा लगता है।
इसी प्रकार भगवान के चैतन्य के पानी का तेज अन्दर भरा है, उसे तू एक बार विश्वास द्वारा ‘परमात्मा और मुझ में कुछ अन्तर नहीं है' - (ऐसा देख) । आहा...हा...! समझ में आया? इस मेरे परमात्मा की दशा का कर्ता में, साधन में, कार्य मेरा, मैं ही परमात्मा होकर मेरी दशा को मैं देता हूँ, मेरे द्वारा देता हूँ और मेरे आधार से करनेवाला मैं परमात्मा हूँ। राग और निमित्त और किसी के आधार से मेरा कार्य हो – ऐसा नहीं है। आहा...हा...! समझ में आया?
मुमुक्षु – एक कार्य में दो कारण नहीं आते?
उत्तर – कारण आये अब, पूरा आत्मा आया। भगवान जिसके पास खड़ा, उसे दूसरे की आवश्यकता क्या है...? यहाँ तो ऐसा कहते हैं । भेद न जान ! हैं ?
मुमुक्षु - बकरा मैं... मैं... करने .....
उत्तर – वह तो बकरा मैं... मैं... किया ही करेगा। सिंह अन्दर आया हो, वह उसमें नहीं रह सकेगा। समझ में आया? आहा...हा...! ऊँचा किया है न ! ऊँचा! उसके रोम, ऊँचे कर डाले सुन तो सही, मूर्ख! कौन है तू? किसकी जाति का है? दशाश्रीमाली बनिया हो, पाँच करोड़ या दस करोड़ का व्यक्ति हो, लड़के का विवाह होता हो (और दूसरा) बनिये का – दशाश्रीमाली का भले गरीब व्यक्ति हो, पाँच-पचास का वेतन लाता हो तो भी उसके मण्डप में आ जायेगा। मण्डप में आ पड़ेगा। मेरी जाति का प्रीतिभोज है, हम एक जाति के हैं. हैं... भाई! नीचकल का लडका हो, घर में बंगला हो (परन्त) अन्दर नहीं जायेगा। छुआरे का मन हो गया, लाओ न छुआरा ले आओ न? दरवाजे पर खड़ा रहेगा, दरवाजे के समीप खड़ा रहेगा। छुआरा लेकर चला जाएगा, दूसरा अन्दर चला जायेगा।