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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
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वह भागा नहीं, दूसरे भागे - बकरे भागे - ऐसी जहाँ दहाड़ आयी, वहाँ भागे, यह क्यों खड़ा रहा? तू तो इसके साथ में है न । तुम्हारी दहाड़ से मुझे कुछ त्रास नहीं लगा। मैं तेरी जाति का हूँ, हाँ! तेरा मुख देखना हो तो, बकरे के मुँह जैसा है या नहीं। पानी में देख! देख तेरा मुँह मेरे जैसा है या बकरे जैसा है ? समझ में आया ? अरे ! तू बकरे के टोले में नहीं रह ! आ जा सिंह के टोले में, भाई ! इसी प्रकार राग-द्वेष और अज्ञान में पड़ा हुआ, हम रागी, द्वेषी, अज्ञानी, एक इन्द्रिय की जाति के और संसार की जाति के हैं । बकरों में एकमेक हो गया, मूर्ख ! दहाड़ पड़ी परमात्मा की, तू परमात्मा मेरी जाति का (मेरी) जाति का, हाँ! मैं नहीं ऐसा नहीं । समझ में आया ? देख तो सही अपनी चीज को, मुझ में पूर्णता प्रगटी वैसी पूर्णता प्रगट होने की तुझमें ताकत है या नहीं ? सन्मुख तो देख अन्दर । आहा... हा...!
श्रीमद् थे न ? श्रीमद् । वे एक बार जंगल जा रहे थे । जंगल... दिशा, उसमें एक ग्वाला खड़ा था, ऐसे देखते-देखते ग्वाला देखा ही करे । कहाँ जाते हैं ? ऐसे शान्त, स्थिर, दूसरे व्यापारी की रीति से इनकी रीति अलग, चलने की लाइन अलग, विचार से, मन्थन से चलते हों.... यह कहाँ जाते हैं ? ऐसे का ऐसा देखा करें, फिर उसे लगा कि निश्चित अनुसरण करने की इस ग्वाले की टेव है। (इसलिए कहा ) भाईयों ! मैं कहूँ वैसा करो । मैं एक परमेश्वर हूँ - ऐसा आँख बन्द करके ध्यान करो। ये बनिया, बनिया साधारण हो (वे ऐसा कहें), भाई साहब ! अरे...रे... ! परमेश्वर कहते हैं । अभी परमेश्वर होंगे ?
श्रीमद् ने कहा कि अरे... ! भाईयों ! परमेश्वर होओ, भाई ! तेरा स्वरूप (परमेश्वरस्वरूप है) मैं परमेश्वर हूँ - ऐसा आँख बन्द करके विचार करो, बस ! फिर अनुकरण करने की बुद्धि थी, इसलिए यह परमेश्वर नहीं - ऐसा कैसे हो ? इस भेद का कोई विचार ही नहीं । ऐसे तीन लोक के नाथ की आवाज आयी थी तू मेरे जैसा मेरी जाति का है । कर विचार अन्दर, उसने भी... भाईसाहब ! इतने इतने कर्म लगे हैं, इतना- इतना हमने राग किया है। ए... निकाचित् कर्म बाँधे हैं, यहाँ चिल्लाते-चिल्लाते (कहते हैं) निकाचित् कर्म पड़े हैं। कहा, परन्तु किसे, तुझे निकाचित् ? देख तो सही तू ! कर्म जड़ में रहे, राग-राग में रहा; अल्पज्ञता पर्याय में रही; पूर्ण स्वरूप में अल्पज्ञान विकार और कर्म - फर्म नहीं आते।