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गाथा - १९
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फल में दुःखी है। घेरे में चढ़ा है । उत्साह कितना, प्रेम है तो ? ऐसे कमाना, ऐसे कमाना, ऐसे स्त्री-पुत्र, ऐसे विवाह करना, इस लड़के का विवाह कराना... आहा... हा... ! अकेली होली है। अकेले दुःख की घानी में पिलता है । सत्य होगा ? रतिभाई !
यहाँ तो दूसरा कहना है, जिसका जिसे प्रेम (होवे ), उसे वह बारम्बार स्मरण करता है, क्योंकि उसका उसे उल्लसित वीर्य काम करता है, वीर्य पर में कुछ काम नहीं करता, परन्तु उल्लसित वीर्य (होवे), ऐसे वीर्य उल्लास में (होवे )... आ... हा... ! मैंने ऐसा किया, मैंने ऐसा किया, मैं ऐसा करूँ..... समझ में आया ? मैंने ऐसा कमा दिया, पचास लाख एकत्रित किये, एक महीने में पचास लाख आमदनी की । ऐ... ई .... ! इसे – पारेख से कहते हैं। इसके भाई को याद किया। एक महीने में पचास लाख । हरिभाई के भाई हैं केशूभाई ! एक महीने में पचास लाख। फट जाए न प्याला ! दशा श्रीमाली बनिया है । है न ? इनके छोटे भाई हैं। समझ में आया ? उसमें कितना उत्साह आता है ? एकदम ऐसा डाला, दो लाख कमाये। अभी भाव बढ़ गया है। दो लाख के तीन लाख हुए हैं। इन तीन लाख का यह लो... ऐसा डाला वहाँ, उसका भाव दूसरे अमुक देश में बढ़ गया है। उस देश में बिक्री करें तो तीन के पाँच लाख होंगे। शीघ्रता करे, ऐसे वीर्य काम कितना करे, लो ! मूढ़ है। वह तो राग का वीर्य है । वहाँ कहाँ आत्मा का वीर्य पूर्ण है ?
मुमुक्षु - ऐसा राग नहीं करे तो रुपये नहीं आते।
उत्तर - धूल में, पैसा तो आनेवाला हो वह आता ही है । राग के कारण पैसा आता है ? परन्तु जिसका जिसे प्रेम, ( वहाँ वीर्य काम करता है ।) 'रुचि अनुयायी वीर्य' जिसकी जिसे रुचि, उसका वीर्य वहाँ काम किये बिना नहीं रहता । उसका ज्ञान, उसकी श्रद्धा, उसका वीर्य, उसका आचरण उसमें काम किया करता है । दुःख में.... दुःख में... दुःख में।
इसी प्रकार यहाँ कहते हैं कि 'जिन सुमरो' - तुझे जिसकी आवश्यकता ज्ञात हो कि यह आत्मा स्वयं सुखी कैसे हो ? जिसे आत्मा की दया आवे... समझ में आया ? आत्मा की दया आवे । अरे... ! यह आत्मा... ! यह अनन्त काल से चौरासी के अवतार में कहीं कोई शरण नहीं। कहीं कोई आधार नहीं; अकेला दुःखी होकर तड़फड़ाता है, तड़फड़ाता है। चौरासी के अवतार में तड़फड़ाता है, हाँ ! ये सब सेठिया - बेठिया इस विकार के दुःख