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गाथा-१७
का ज्ञान करेगा, उसका आश्रय करके ज्ञान करेगा, वह निश्चय से अरहन्त और सिद्धपद को प्राप्त करेगा। वह मार्गणा और गुणस्थान का जो निषेध किया, उसमें यह मोक्षपद की पर्याय सिद्धपद की पर्याय-केवलज्ञान की पर्याय को प्राप्त करेगा। समझ में आया?
जिय परमेट्ठि पावहु जिसके द्वारा, ऐसा। जिय अर्थात् जिससे तू सिद्ध परमेष्ठी.... अपने आत्मा को जानने से ही सिद्ध होगा... व्यवहार को जानने से सिद्ध नहीं होगा। समझ में आया? (यह कहते हैं) - जिस भाव से तीर्थंकरकर्म बाँधे, वह भाव आया तो उसकी मुक्ति होगी... तीर्थंकर प्रकृति बँधी न? प्रकृति बँधी तो मुक्ति होगी - झूठ बात है। यह तेरा ज्ञान ही मिथ्या है। समझ में आया? यह अप्पा मुणहु में स्थिर होगा तब केवलज्ञान को प्राप्त करेगा। राग आया, और बंध हुआ, इसलिए केवलज्ञान को प्राप्त करेगा ऐसा है नहीं। क्या कहा? इसमें समझ में आया?
सम्यग्दृष्टि को आत्मा में विकल्प आया कि तीर्थंकर गोत्र बँध गया। यह विकल्प आया और उसका ज्ञान भी आत्मा को आश्रय करने योग्य नहीं; विकल्प और प्रकृति का बँध, वह जानने योग्य है। उससे मुक्ति होगी – ऐसा नहीं और उसका ज्ञान करने योग्य है, इसलिए उसके ज्ञान से मुक्ति होगी – ऐसा नहीं। आहा...हा...!
मुमुक्षु – उसमें तो ऐसा आता है।
उत्तर – यह सब तो व्यवहार के कथन, निमित्त के कथन हैं। एक ही बात – भगवान! अप्पा मुणहु जिय पावहु परमेट्टि यह विकल्प उत्पन्न हुआ, पता पड़ा। भगवान ने श्रेणिक राजा से कहा, भगवान ने श्रेणिक राजा से कहा कि हे श्रेणिक! तू भविष्य में तीर्थंकर होगा। समझ में आया? समवसरण में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त हुए, वह सब स्वभाव के अवलम्बन से क्षायिक को प्राप्त हुए और क्षायिक का ज्ञान तथा तीर्थंकर होगा इसका ज्ञान, वह ज्ञान उसे केवलज्ञान का कारण नहीं है। आहा...हा... ! रतनलालजी! अद्भुत बात भाई ! बेचारे लोगों को डर लगता है। ए... सोनगढ़ का एकान्त है। अब, यह सोनगढ़ का नहीं, यह भगवान का है। सुन न ! तुझे भगवान के मार्ग का पता नहीं। समझ में आया? ए... हिम्मतभाई ! ये भड़कते हैं, भड़कें.... ए... वहाँ तो ऐसा हो जाता है।