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________________ योगसार प्रवचन ( भाग - १ ) ११९ निश्चयनय से अपने आत्मा को आत्मारूप ही समझ पर्याय का ज्ञान कराया.... समझ में आया? कहिया.... कहिया है न ? कहिया है अर्थात् जान । है, मार्गणा है, गुणस्थान है, भगवान की वाणी में जो व्यवहार आया, वह सब है । है वह भेदरूप है, अंशरूप की दशावाला भाव है, वह जाननेयोग्य है; आश्रय करने योग्य नहीं । समझ आया? पुनः अन्यमती से पृथक् पर्यायनय से किया है। वीतराग सर्वज्ञ परमेश्वर के अतिरिक्त जितने अज्ञानियों ने व्यवहार का विषय कहा है, वह सब मिथ्या है। परमेश्वर जिनेन्द्रदेव त्रिलोकनाथ केवलज्ञानी ने जो देखा, उसका जो गति, मार्गणा आदि के पर्याय के भेद उन्होंने कहे, वैसे हैं - ऐसा तू जान तो यह अभी तो व्यवहार है । आहा... हा... ! समझ में आया ? इससे यह मार्गणा (भेद) लिये कि गुणस्थान और मार्गणा और इस जगह गुणस्थान पहला, तीसरा, चौथा जो हो वह। यह जीव इस गति में है और इस कषाय में है, इस लेश्या में है। समय-समय की पर्याय में कौन-कौन सी पर्याय है, वह जानने (योग्य है) । जैसा भगवान ने कहा, वैसा व्यवहारनय के विषय में है । अन्यमत में तो यह ( है ही नहीं) वीतराग के अतिरिक्त - परमात्मा के अतिरिक्त कहीं नहीं है। उसे कहते हैं कि व्यवहारनय से दिट्ठी मग्गण गुणस्थान कहे हैं। व्यवहार से भगवान के ज्ञान में यह कहा है । निश्चय से अपने आत्मा को समझ • अप्पा मुणहु - भगवान को जान । ओ... हो... ! जिसमें केवलज्ञान का कन्द पड़ा है, जिसमें अनन्त गुण की राशि है। एक-एक गुण में अनन्त सामर्थ्य पड़ा है - ऐसा प्रभु ! अप्पा ऐसा कहा है न ? गुण की कहाँ बात की है ? आत्मा... आत्मा एकरूप त्रिकाल अभेद महासत्ता - ऐसा भी जिसमें भेद नहीं है.... समझ में आया ? ऐसे आत्मा को मुणहु । आत्मा को आत्मारूप ही समझ.... ऐसे आत्मा को आत्मारूप जान । - 'जिय परमेट्ठि पावहु' जिससे तू सिद्ध परमेष्ठी अथवा अरहन्त परमेष्ठी का पद पा सके । आहा.... हा...! देखो ! यहाँ कहा अब, उसका फल कहा। पहले में (सोलहवीं गाथा में) अप्पा दंसण मुणहु कहा था न ? समझ में आया ? उसमें कहा था न ? अणु किंपि वियाणि | मोक्खह कारण जोईया णिच्छह एहउ जाणि ॥ १६ ॥ वहाँ कहा । यहाँ फल बताते हैं । जो कोई भगवान आत्मा, अन्तर- अभेदस्वभाव चिदानन्द
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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