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________________ गाथा - १७ यहाँ तो फिर जिनेश्वर द्वारा कथित.... अन्यमती कथित वस्तु होती ही नहीं । जिनेश्वर ने मार्गणा और गुणस्थान कहे हैं। समझ में आया ? चौदह गुणस्थान और चौदह मार्गणा । मार्गणा अर्थात् खोजना। मार्गणा अर्थात् शोधना कि यह जीव किस गति में था ? उसे कौन सा भाव था ? कौन सी कषाय थी ? कौन सी दृष्टि थी ? भव्य है या अभव्य है ? समझ में आया ? सम्यग्दृष्टि है (या) मिथ्यादृष्टि है ? यह ज्ञान है - उसमें मति श्रुत है या केवल है या अवधि है ? इस प्रकार उसे – जीव को किसी भी चार गति में से ऐसे चौदह बोल से खोजकर निर्णय करना कि यह जीव ऐसा है। यह सब चौदह बोल - गति, जाति, काया, इन्द्रिय, लेश्या .... समझ में आया ? योग, उपयोग, यह सब जानने की पर्याय तो जानने जैसी है, जानने योग्य है । उसके आश्रय से सम्यग्दर्शन नहीं होता । समझ में आया ? ए... रतिभाई ! आहा... हा...! ११६ - केवल व्यवहारनय की.... ववहारेण वि दिट्ठि – ऐसा है सही न ? केवल व्यवहारनय की दृष्टि से ही जीव को मार्गणा और गुणस्थान.... गुणस्थान (अर्थात्) यह पहले गुणस्थान में है, यह दूसरे में है, यह तीसरे में है, यह चौथे में है, यह पाँचवें - छठवें में और यह केवली है, लो! यह तेरहवें में केवली है । तेरहवें गुणस्थान में केवली है, चौथे गुणस्थान में सम्यक्त्वी है, छठवें गुणस्थान में मुनि है - यह पर्याय के भेदवाली समस्त बात जाननेयोग्य भले हो, आदरणीय नहीं है। उसके ज्ञान द्वारा सम्यग्दर्शन नहीं होता । - - जिसकी चौदह (मार्गणा ) – गति, काय, इन्द्रिय, लेश्या आदि में जिसकी पर्याय में जिसकी भूल है, उसकी तो यहाँ बात नहीं करते अथवा जिसे मुनिपने की पर्याय, केवलज्ञान की पर्याय, सम्यग्दर्शन की पर्याय, मिथ्यादर्शन की पर्याय कैसी होती है ? ऐसी पर्याय का जिसको ख्याल नहीं है, उसकी यहाँ बात नहीं करते। मुनिपने की दशा ऐसी होती है, केवलज्ञानी की ऐसी होती है, चौथे की - सम्यक्त्व की ऐसी होती है, मिथ्यात्व की ऐसी होती है। ऐसे जीवों को चार गति में खोजने से कुछ निश्चित करे कि यह जीव उसमें है। यह सब ज्ञान भले हो, जानने के लिये है । इतना भेद है, वह जानने के लिये है, आश्रय करने और उसके आश्रय से सम्यग्दर्शन होता है - ऐसे गुणस्थान और मार्गणास्थान
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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