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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) ११७ के भेद में ताकत नहीं है। समझ में आया? मार्गणा किसे कहना और गुणस्थान किसे कहना? यह कभी सुना नहीं होगा। मार्गणा क्या होगी? मार्गणा अर्थात् इन चौरासी लाख में किसी भी जीव को खोजना हो – शोधना हो कि भई! यह किस गुणस्थान में है ? भव्य है या अभव्य है; केवली है या छठवें गुणस्थान में है; यह नारकी है या देव है; यह कृष्णलेश्यावाला है या ज्ञान उपयोगवाला है या दर्शन उपयोगवाला है – ऐसी वर्तमान पर्याय का अस्तित्व है। इसलिए उसे मार्गणा अर्थात् शोधने द्वारा निर्णय करे, परन्तु यह तो व्यवहार.... केवल व्यवहारदृष्टि से कथन है। आहा...हा...! परन्तु यह है या नहीं? है या नहीं? है तो निश्चय से है - ऐसा नहीं। है परन्तु वह व्यवहार है। भेदरूप से अवस्था में ज्ञान में है, वस्तु है, व्यवहारनय का विषय है। समझ में आया? उसे त्रिकाल अभेददृष्टि की अपेक्षा से इन समस्त भेदों को अभूतार्थ कहा जाता है, असत्यार्थ कहा जाता है, झूठा है – ऐसा कहा जाता है। वे 'है' इस अपेक्षा से सत्यार्थ हैं, परन्तु त्रिकाल की अपेक्षा से उन्हें असत्यार्थ कहा गया है। आहा...हा...! मुमुक्षु - दो प्रकार से लागू पड़े। उत्तर – दोनों लागू पड़े। मुमुक्षु – उसे अनेकान्त कहते हैं। उत्तर – दूसरा अनेकान्त किसे होगा? फूदड़ीवाद को होगा? आहा...हा...! भगवान आत्मा किस पर्याय में है ? किस गति में है ? भव्य हूँ – ऐसा जो ख्याल आना, वह सब व्यवहार ज्ञान का विषय है। आहा...हा...! पर्याय है न! समझ में आया? यह ज्ञान उपयोग है, वह मति का है और श्रुत का है और अवधि का है और केवल का है, यह क्षायिक समकित कहलाता है और यह क्षयोपशम समकित कहलाता है और यह उपशम समकित कहलाता है - यह सब पर्याय के भेद हैं। यह पाँच इन्द्रियवाला है और यह एक इन्द्रियवाला है यह दो इन्द्रियवाला है - यह सब इस अवस्था दृष्टि से है अवश्य, हाँ! 'है' अपेक्षा से है परन्तु त्रिकाल स्वभाव के अभेद अवलम्बन का आश्रय करने की अपेक्षा से वह सब नहीं है। मुझे लाभदायक नहीं, वह नहीं; मुझे लाभदायक नहीं, वह
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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