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गाथा-१६
उत्तर – निश्चय से जानना यह क्या कहा? दरबार में क्या कहते हैं ? आदेश देते हैं । ऐसे निमित्त से तो ऐसा कि बराबर होता है, ऐसा वह कहता है । समझे न? है न?
मुमुक्षु - दो नय हैं न?
उत्तर – नहीं, नहीं, ऐसा कहते हैं न? ऐसा कहे तो अन्तर पड़े। तुझे कर का अर्थ तुझे करना है या इसे करना है। ऐसा कहते हैं। यह तो ऐसा कहते हैं कि मेरे सामने देखना छोड़ दे। मैं कहता हूँ उस ओर का सुनने का विकल्प छोड़ दे। यह मैं क्या कहता हूँ, उसका मनन भी मेरे सन्मुख रहकर कर, वह भी छोड़ दे। आहा...हा...! समझ में आया? भगवान ऐसा कहते हैं, गुरु ऐसा कहते हैं। ऐसा जो मनन, वह परसन्मुख का मनन है, छोड़ उसे, वह साधन नहीं है। ले, ऐसा कहते हैं। उसे जान, कहते हैं । इस प्रकार जान, समझ में आया?
भगवान सर्वज्ञ परमेश्वर त्रिलोकनाथ तीर्थंकरदेव प्रभु ऐसा स्वयं फरमाते हैं। भाई! हमारी श्रद्धा तेरी हुई, उसे सम्यग्दर्शन हम नहीं कहते। आहा...हा... ! हमारे द्वारा कथित वाणी के शास्त्रों की तू श्रद्धा करे, उसे हम सम्यग्दर्शन नहीं कहते – ऐसा सर्वज्ञ की वाणी में यह आता है। तब दर्शन किसे कहना? अप्पा दंसण इक्क भगवान तेरा आत्मा, उसके सन्मुख का अनुभव करके प्रतीति का होना, वह एक ही सम्यग्दर्शन है; दूसरा सम्यग्दर्शन दूसरे प्रकार का हमने नहीं कहा, हम कहते नहीं और ऐसा है नहीं। हैं ?
__ पूछते हो इसलिए अधिक स्पष्ट आता है – ऐसा कहते हैं । आहा...हा...! भगवान तझमें त पुरा प्रभू पडा है। तझे किसी की आवश्यकता नहीं है। इस परसन्मख के ज्ञान की भी तुझे आवश्यकता नहीं है – ऐसा कहते हैं। परसन्मुख के पदार्थ की तो आवश्यकता नहीं.... आहा...हा...! परसन्मुख की श्रद्धा की तो आवश्यकता नहीं; परसन्मुख का आश्रय होने पर राग की मन्दता दया, दान, भाव की भी तुझे जरूरत नहीं। उनकी तो जरूरत (नहीं) परन्तु भगवान यह और गुण यह – ऐसे मन के संग से उत्पन्न होनेवाला विकल्प, उसकी भी तुझे जरूरत नहीं है। आहा...हा...! समझ में आया? यह सूक्ष्म है, मनहरभाई ! यह ऐसा का ऐसा नहीं। स्टोर में से ऐसा का ऐसा पकड़ में आवे ऐसा नहीं है। थोड़ा-थोड़ा समय निकाले, तब पकड़ में आवे ऐसा है। किसी दिन जा आयें, उसमें कुछ समझ में भी