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________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) ११३ मुमुक्षु – निमित्त के बिना कुछ कभी होता है। उत्तर – परन्तु हुआ है, तब उसे निमित्त कहते हैं। फिर होता है क्या? अन्तर स्वभाव के दर्शन को दर्शन हुआ, तब तो रागादि के व्यवहार समकित को अर्थात् राग को निमित्त कहा गया। नैमित्तिक के बिना निमित्त किसका? समझ में आया? बहुत उल्टा रास्ता है भाई! तुझे पूर्ण आनन्द की महिमा नहीं आती और उस महिमा के बिना जितनी कुछ भेद और राग में महिमा जाये, वह सब मिथ्यादर्शन शल्य है। आहा...हा...! समझ में आया? वीतराग परमेश्वर का मार्ग जगत् को सुनने नहीं मिला, इसलिए उल्टा रास्ता मान बैठा कि हम भगवान को मानते हैं। भगवान को ऐसा कहते हैं। ऐसा नहीं मानता और तू भगवान को मानता है – ऐसा कौन कहता है ? समझ में आया? देव-गुरु-धर्म की श्रद्धा कहो कैसे रहे? कैसे रहे शुद्ध श्रद्धान आवे? शुद्ध श्रद्धा के बिना सर्व क्रिया करे वह राख पर लीपना है... इतनी राख बिछा रखी हो... राख तो समझ में आता है न? राख... राख... उसमें ऊपर मिट्टी करते हैं.... गार को (तुम्हारे यहाँ) क्या कहते हैं ? लीपाई करते हैं न? लीपना? वह लीपना कहाँ चले? राख के ऊपर लीपाई चलती होगी? इसी प्रकार आत्मा की भूमिका के दर्शन बिना, शुद्ध श्रद्धा बिना देव-गुरु-शास्त्र की श्रद्धा, उसकी सच्ची श्रद्धा नहीं है। क्योंकि देव-गुरु-शास्त्र तो यह कहते हैं। देव -गुरु और शास्त्र आत्मा के दर्शन को दर्शन कहते हैं। अब उस दर्शन को दर्शन मानना नहीं और देव-गुरु-शास्त्र को मानते हैं (ऐसा कहता है तो) उसकी वह मान्यता ही मिथ्या है। समझ में आया? ऐसे आत्मदर्शन के बिना, आत्मा (की) शुद्ध श्रद्धा के बिना, देव-गुरु-शास्त्र की श्रद्धा भी सच्ची नहीं रहती और उसके बिना जितना क्रियाकाण्ड किया जाये, व्रत-नियम अपवास... वह सब राख के ऊपर मिट्टी लेपना है, मिट्टी (लेपने के समान है)।गार समझ में आता है न? लीपना। पूरी पपड़ी उखड़ती है। राख के ऊपर ऐसे-ऐसे करें, वहाँ उसमें जरा भी लीपाई नहीं होती। समझ में आया? लो! एक गाथा हुई। दूसरी गाथा। मुमुक्षु - आदेश देते होंगे कि निमित्त से जान।
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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