SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७ जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में ] श्रावकाचार के अनुकूल शाकाहार का प्रचार ही हमें अभीष्ट है; यही कारण है कि हमने इस वर्ष का नाम शाकाहार श्रावकाचार वर्ष रखा है। दूसरी बात यह भी है कि शाकाहार शब्द में मांसाहार का निषेध तो हो जाता है, पर मदिरापान का निषेध नहीं होता है । मदिरापान भी एक ऐसी बुराई है कि जिसमें अनन्त जीवों का घात तो होता ही है; नशाकारक होने से मदिरा विवेक को नष्ट करती है, बुद्धि में भ्रम पैदा करती है, स्वास्थ्य को खराब करती है और पारिवारिक सुख शान्ति को समाप्त कर देती है । अतः मांसाहार के समान ही मदिरापान का निषेध भी आवश्यक है । आज की दुनिया में मदिरा के समान ही मन को मोहित करनेवाले, जीवन को बर्बाद कर देनेवाले और भी अनेक नशीले पदार्थ चल निकले हैं; उन सभी से समाज को बचाना अत्यन्त आवश्यक है। श्रावकाचार में मांसाहार के निषेध के साथ-साथ मदिरापान का भी निषेध होता है, इसकारण भी शाकाहार के साथ श्रावकाचार शब्द जोड़ा गया है। इनके अतिरिक्त स्थूल रूप से पांच पापों का त्याग और जैनियों के मूल चिह्न रात्रिभोजन त्याग एवं पानी छानकर काम में लेने को भी इसमें शामिल किया गया है। इसप्रकार यह शाकाहार श्रावकाचार वर्ष नाम सार्थक हो जाता है। हाँ, उक्त संदर्भ में एक प्रश्न यह भी उठाया जा सकता है कि श्रावकाचार में शाकाहार तो आ ही जाता है; अतः अकेला श्रावकाचार वर्ष नाम रखने में क्या हानि है ? हाँ, हानि तो कुछ नहीं; पर शाकाहार शब्द आज विश्व का प्रसिद्ध शब्द है और श्रावकाचार शब्द से सभी जैन भी पूर्णत: परिचित नहीं हैं; अतः शाकाहार शब्द को रखना अत्यन्त आवश्यक है। दूसरी बात यह
SR No.009474
Book TitleShakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy