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________________ [ शाकाहार भी है कि हम सम्पूर्ण समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते हैं। अत: उसके द्वारा निश्चित किए गये शब्द को उसी रूप में रखना हमें अभीष्ट है। Ε हमारा प्रचार क्षेत्र जैनेतर समाज नहीं; मुख्यतः जैनसमाज है । उसका बहुभांग अभी भी पूर्णत: शाकाहारी है, पर उसमें रात्रिभोजन त्याग, पानी छानकर काम में लेने और कंदमूल न खाने के संदर्भ में शिथिलता अवश्य आ गई है। अतः इनके पालन की प्रेरणा को शामिल किए बिना सारा श्रम निरर्थक ही हो जाने की संभावना थी। इसकारण अत्यन्त गहराई से विचार-विमर्श करने के उपरान्त ही यह सुनिश्चित किया गया है कि इस वर्ष को हम शाकाहार श्रावकाचार वर्ष के रूप में ही सम्बोधित करें। जो मांसाहार से एकदम दूर हैं, उस जैन समाज के समक्ष मांसाहार निषेधपूर्वक शाकाहार के रूप में आलू, बैंगन, मूली, गाजर आदि खाने का उपदेश देना हमें एकदम अटपटा लगता है। मांसाहार के निषेध के साथ-साथ अभक्ष्य पदार्थों को खाने का निषेध भी हमें अभीष्ट है। अकेले शाकाहार शब्द से हमारा उक्त अभिप्राय पूर्णत: व्यक्त नहीं होता था । अत: हमने शाकाहार के साथ श्रावकाचार शब्द जोड़ना आवश्यक समझा है। ध्यान रहे कि हमने शाकाहार के प्रचार को गौण नहीं किया है, वह तो मुख्य है ही; पर साथ में श्रावकाचार को भी शामिल कर लिया है। कुछ लोग यह प्रश्न भी उपस्थित करते हैं, शुद्ध शाकाहारी समाज के समक्ष मांसाहार के त्याग की चर्चा करना उचित प्रतीत नहीं होता ? इसप्रकार का प्रश्न उपस्थित करनेवालों से हमारा एक विनम्र निवेदन है कि क्या श्रावकाचार के संदर्भ में जैनाचार्यों ने मद्य-मांसमधु के त्याग की चर्चा नहीं की है ? पुरुषार्थसिद्धयुपाय और
SR No.009474
Book TitleShakahar Jain Darshan ke Pariprekshya me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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