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| शाकाहार उसकी सहयोगी संस्थाओं ने उन सभी में अपनी पूरी शक्ति लगाकर सक्रिय सहयोग किया है। शाकाहार और श्रावकाचार के प्रचार-प्रसार में भी युवा फैडरेशन अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहता है। सही दिशा में सक्रिय युवकों का सहयोग करना सभी समझदार लोगों का नैतिक दायित्व है। यही कारण है कि पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट ने उसे सब प्रकार से सहयोग करने का निश्चय किया है। अन्य संस्थाओं से भी विनम्र अनुरोध है कि वे भी इस दिशा में सक्रिय हों।
शाकहार के संबंध में जब भी कोई चर्चा चलती है या कुछ लिखा जाता है या पोस्टर आदि प्रकाशित किये जाते हैं तो उनमें शाकाहार को साग-भाजी आदि के रूप में ही बताया जाता है, दिखाया जाता हैं। साग-सब्जी में भी गाजर, मूली आदि जमीकंद व बैंगन, गोभी आदि अभक्ष्य सब्जियाँ ही दिखाई जाती हैं, बताई जाती हैं; जबकि इन्हें जैन श्रावकाचार में अभक्ष्य कहा गया है।
जैनसमाज में शाकाहार का प्रचार करते समय हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि कहीं अनजाने में ऐसा न हो जावे कि हम शाकाहार का प्रचार करने निकलें और हमारे द्वारा अभक्ष्य पदार्थों के खाने का प्रचार हो जाय। अत: शाकाहार को उसके व्यापक अर्थों में देखना होगा, प्रचारित करना होगा। गेहूँ चावल आदि अनाज; आम, अमरूद, सेव, संतरा आदि फल और लोकी आदि सात्विक भक्ष्य सब्जियाँ भी शाकाहार में आती हैं। शाकाहार के रूप में इन्हें ही प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
गाजर, मूली आदि साग हैं या नहीं' - इस विवाद में उलझना हमें अभीष्ट नहीं है। इसकारण शाकाहार के साथ श्रावकाचार शब्द जोड़ना आवश्यक लगा। भले ही वे साग हों, पर श्रावकों द्वारा खाने योग्य नहीं हैं; अतः अभक्ष्य हैं। उनका प्रचार हमें अभीष्ट नहीं है।