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________________ 347 गाथा १५४ देखो, शुभ व अशुभ दोनों परिणामों को स्थूल कहा और इनसे भिन्न आत्मस्वभाव को या ज्ञायकभाव को सूक्ष्म कहा है। अशुभभाव जैसा स्थूल है, वैसा ही स्थूल शुभभाव है। बन्ध की अपेक्षा दोनों एक ही हैं।" उक्त सम्पूर्ण कथन का तात्पर्य यह है कि कर्मक्षय का मूलहेतु तो निजभगवान आत्मा के ज्ञान, श्रद्धान और ध्यानरूप सामायिक या शुद्धोपयोग ही है, शुभाशुभभाव नहीं हैं; क्योंकि शुभाशुभभाव तो कर्मबंध के कारण हैं। अज्ञानी जीव इस बात को तो गहराई से समझते नहीं और पुण्यभाव को ही कर्मक्षय का हेतु जानकर उसी में मग्न रहते हैं। ___ आचार्य जयसेन यहाँ पुण्याधिकार को समाप्त मानते हैं। इस गाथा की टीका के अन्त में वे लिखते हैं - ___ "एवं गाथादशकेन पुण्याधिकार समाप्तः - इसप्रकार इन दस गाथाओं के द्वारा यह पुण्याधिकार समाप्त हुआ।" ____ ध्यान रहे आचार्य जयसेन यहाँ पुण्याधिकार की समाप्ति की सूचना दे रहे हैं, पुण्य-पापाधिकार की समाप्ति की नहीं; क्योंकि पुण्य-पापाधिकार की समाप्ति तो वे भी आचार्य अमृतचन्द्र के समान यहाँ से ९ गाथाओं के बाद १६३वीं गाथा पर ही करेंगे। १. प्रवचनरत्नाकर, भाग ५, पृष्ठ ११० जिसप्रकार आग चाहे नीम की हो, चाहे चन्दन की, पर आग तो जलाने का ही काम करती है। ऐसा नहीं है कि नीम की आग जलाये और चन्दन की आग ठंडक पहुँचाये। भाई ! चन्दन भले ही शीतल हो, शीतलता पहुँचाता हो, पर चन्दन की आग तो जलाने का ही काम करेगी। भाई ! आग तो आग है, इससे कुछ अन्तर नहीं पड़ता कि वह नीम की है या चन्दन की। उसीप्रकार राग चाहे अपनों के प्रति हो या परायों के प्रति हो, चाहे अच्छे लोगों के प्रति हो या बुरे लोगों के प्रति हो, पर है तो वह हिंसा ही, बुरा ही। ऐसा नहीं है कि अपनों के प्रति.होने वाला राग अच्छा हो और परायों के प्रति होने वाला राग बुरा हो अथवा अच्छे लोगों के प्रति होने वाला राग अच्छा हो और बुरे लोगों के प्रति होने वाला राग बुरा हो। अच्छे लोगों के प्रति भी किया गया राग भी हिंसा होने से बुरा ही है। - अहिंसा : महावीर की दृष्टि में, पृष्ठ २९
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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