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________________ 86 समयसार अनुशीलन प्रश्न -द्रव्य शब्द का प्रयोग तो अनेक अर्थों में होता है। उनमें दृष्टि का विषय कौन-सा द्रव्य है? उत्तर -प्रत्येक वस्तु द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावमय होती है । वस्तु के इन चार पक्षों में द्रव्य भी एक पक्ष है, जो सामान्य-विशेषात्मक होता है। इसप्रकार वस्तु के सामान्य-विशेषात्मक पक्ष को भी द्रव्य कहते हैं और मूलवस्तु को भी द्रव्य कहते हैं। ये दोनों ही द्रव्य द्रव्यदृष्टि के विषय नहीं बनते हैं। ___ वस्तु के सामान्य और विशेष - ये दो रूप द्रव्य की अपेक्षा हैं, भेद और अभेद - ये दो रूप क्षेत्र की अपेक्षा हैं, नित्य और अनित्य - ये दो रूप काल की अपेक्षा हैं और एक और अनेक – ये दो रूप भाव की अपेक्षा हैं। जिसप्रकार गुणों का अभेद द्रव्यार्थिकनय का विषय है और गुणभेद पर्यायार्थिकनय का, प्रदेशों का अभेद द्रव्यार्थिकनय का विषय है और प्रदेशभेद पर्यायार्थिकनय का, द्रव्य का अभेद (सामान्य) द्रव्यार्थिकनय का विषय है और द्रव्यभेद (विशेष) पर्यायार्थिकनय का; उसीप्रकार काल (पर्यायों) का अभेद द्रव्यार्थिकनय का विषय होता है और कालभेद (पर्यायें) पर्यायार्थिकनय का विषय बनता है। यहाँ जो-जो पर्यायार्थिकनय के विषय हैं, उन सभी की पर्यायसंज्ञा है और जो-जो द्रव्यार्थिकनय के विषय हैं, उन सभी की द्रव्यसंज्ञा है। इसप्रकार अध्यात्म में गुणभेद, प्रदेशभेद, द्रव्यभेद (विशेष) एवं कालभेद (पर्यायें) - इन सभी की पर्यायसंज्ञा ही है और ये सभी पर्यायें द्रव्यार्थिकनय का विषय नहीं बनती; अतः दृष्टि का विषय भी नहीं बनती। अपनी आत्मवस्तु के इन चार युगलों में सामान्य, अभेद, नित्य और एक - इनकी अखण्डता द्रव्यार्थिकनय का विषय बनती है और
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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