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________________ समयसार अनुशीलन को कर्ता-कर्म के रूप में घटित करें तो यह कहा जायेगा कि ज्ञानक्रिया का ज्ञायक ही कर्ता है और जानने में भी ज्ञायक ही आया; अतः वही कर्म भी हुआ । इसप्रकार यहाँ कर्ता-कर्म की अनन्यता के कारण ज्ञेय और ज्ञाता दोनों एक ज्ञायक भाव ही रहा; क्योंकि आत्मा अनुभव में भी ज्ञायकरूप से ही ज्ञात होता है, जानने के स्वभाववाले के रूप में हो ज्ञात होता हैं । 74 इसप्रकार जब ज्ञाता और ज्ञेय दोनों ही रूपों में एक ज्ञायकभाव ही सुनिश्चित हो गया तो फिर परज्ञेय की बात ही कहाँ रही, जिसके कारण ज्ञायकभाव को अशुद्धता का प्रसंग आवे । इसीलिए तो कहा है कि यह ज्ञायकभाव उपासित होता हुआ शुद्ध कहा जाता है, अनुभव में आता हुआ शुद्ध कहा जाता है। अनुभव के काल में जब ज्ञायकभाव परज्ञेय का ज्ञाता ही नहीं रहा तो परज्ञेय के साथ ज्ञेय-ज्ञायक संबंध के कारण आनेवाली अशुद्धता का कोई प्रश्न ही नहीं रहता। यही कारण है कि उपासित होते हुए ज्ञायकभाव को शुद्ध कहा है । अतः यह ठीक ही कहा है कि जैसे दीपक घटपटादि को प्रकाशित करने की अवस्था में भी दीपक है और अपने को अपनी ज्योतिशिखा को प्रकाशित करने की अवस्था में भी दीपक ही है, अन्य कुछ नहीं; उसीप्रकार ज्ञेयाकार अवस्था में जो ज्ञायकरूप से ज्ञात हुआ, वह स्वरूपप्रकाशन की अवस्था में भी कर्ता-कर्म के अनन्यत्व होने के कारण ज्ञायक ही है । - इसप्रकार गाथा की उत्थानिका में जो प्रश्न उपस्थित किया गया था कि वह शुद्धात्मा कौन है; उसका समाधान हो गया कि प्रमत्त- अप्रमत्त पर्यायों से रहित ज्ञायक भावरूप से ज्ञात होता हुआ, अनुभव में आता हुआ आत्मा ही शुद्धात्मा है । प्रश्न -आप इस बात पर विशेष बल दे रहे हैं कि ज्ञायकरूप से ज्ञात हुआ आत्मा ही शुद्धात्मा है । 'ज्ञायकरूप से ज्ञात हुआ' का क्या कोई विशेष अर्थ है ?
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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