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________________ समयसार अनुशीलन 52 आशय हुआ कि गुरुमुख से आत्मा की बात सुनना, आत्मा का परिचय प्राप्त करना भी आत्मानुभव के लिए आवश्यक है। ___ आत्मज्ञानी गुरुओं की सेवा का अर्थ मात्र उनके पैर दबाना नहीं है, अपितु उनकी उचित विनय के साथ, मर्यादा के साथ; उनसे आत्मा की बात सुनना-समझना ही है । यहाँ पर उन आत्मज्ञानी गुरुओं को लेना ही अपेक्षित है कि जो आत्मा की बात करते हों, स्वयं समझते हों; उनकी बात नहीं है, जो आत्मा का नाम सुनते ही उत्तेजित हो जाते हों। ___ आत्मा की बात का आशय भी एकत्व-विभक्त आत्मा की बात से है। यहाँ रागी-द्वेषी विकारी आत्मा की बात नहीं, कर्मों से बंधे संसारी आत्मा की बात भी नहीं; पर इनसे भिन्न शुद्ध-बुद्ध, निरंजन-निराकार. एकत्व-विभक्त त्रिकाली ध्रुव निज भगवान आत्मा की बात है। इसी त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित करनेवाले, इसमें ही मगन ज्ञानी गुरुओं से एकत्व-विभक्त आत्मा की बात समझने की प्रेरणा इस गाथा में दी गई है। ___ आचार्यदेव इसी एकत्व-विभक्त आत्मा को समझाने की प्रतिज्ञा आगामी गाथा में कर रहे हैं। प्रत्येक आत्मा अपने में स्वयं परिपूर्ण है। स्वभाव से तो प्रत्येक आत्मा स्वयं ज्ञानान्दस्वभावी परिपूर्ण तत्त्व है ही, पर्याय में भी पूर्णता प्राप्त करने के लिए उसे पर की ओर झांकने की आवश्यकता नहीं। यह स्वयं अपनी भूल से दुःखी है और स्वयं अपनी भूल मेटकर सुखी भी हो सकता है। प्रत्येक आत्मा स्वयं भगवानस्वरूप है और यदि पुरुषार्थ करे तो भगवानस्वरूप आत्मा की अनुभूति करने में भी समर्थ है। - सत्य की खोज, पृष्ठ २०१
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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