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________________ 415 गाथा 49 प्रश्न -आप इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते; अत: चतुराई से टाल रहे हैं? उत्तर -अरे भाई ! इसमें चतुराई की क्या बात है ? हम भावलिंगी संतों में ऐसा भेद कैसे कर सकते हैं? हमारा काम तो इतना ही है कि विभिन्न विशेषणों के जो विभिन्न अर्थ प्राप्त होते हैं; उन्हें पाठकों के सामने प्रस्तुत कर दें। जबतक उनमें कोई ऐसा अन्तर न हो कि जिससे सैद्धान्तिक मतभेद खड़ा होता हो, तबतक उनको सन्दर्भ में कुछ भी टिप्पणी करना अनावश्यक ही नहीं; अनर्गल चेष्टा है। ___ अब अव्यक्त विशेषण के सम्बन्ध में विचार करते हैं। आत्मख्याति में अव्यक्त विशेषण के भी छह अर्थ किए गये हैं। __ पहले अर्थ में ज्ञेयभावों से एवं दूसरे अर्थ में भावकभावों से भिन्नता बताई गई है। अत: कहा गया है कि छहद्रव्यमयी लोक व्यक्त है, कषायचक्ररूप भावकभाव व्यक्त है और उनसे भिन्न होने के कारण भगवान आत्मा अव्यक्त है / यहाँ ज्ञेयभावों और भावकभावों को व्यक्त कहकर, उनसे भिन्न होने के कारण आत्मा को अव्यक्त कहा गया है। ज्ञेय पदार्थों और रागादि भावकभावों से भिन्नता की बात विगत गाथाओं में विस्तार से स्पष्ट हो चुकी हैं / अतः अब यहाँ इस सम्बन्ध में कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है। __ अव्यक्त के तीसरे अर्थ के सन्दर्भ में स्वामीजी के विचार द्रष्टव्य हैं, जो इसप्रकार हैं - ___ "चित्सामान्य में चैतन्य की समस्त पर्यायें निमग्न हैं। जो पर्यायें भविष्य में होनेवाली हैं और जो पर्यायें भूतकाल में हो गई हैं; वे सभी पर्यायें चैतन्य सामान्य में अन्तर्लीन हैं। वर्तमान पर्याय चैतन्य में लीन नहीं है। यदि वर्तमान पर्याय भी उसमें निमग्न हो तो जानने का काम कौन करेगा? वर्तमान पर्याय के अलावा भूत-भविष्य की समस्त पर्यायें चैतन्य में अन्तर्लीन हैं; इसलिए गाथा में 'जाण' शब्द का प्रयोग किया
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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