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________________ 414 समयसार अनुशीलन प्रश्न - शास्त्रों में समचतुरस्त्र आदि छह संस्थानों की चर्चा है। वे छह संस्थान आत्मा में नहीं हैं, इसलिए जीव अनिर्दिष्टसंस्थान है; आचार्य अमृतचन्द्र ने ऐसा अर्थ क्यों नहीं किया? उत्तर - ऐसा अर्थ आगे ५०वीं गाथा में किया गया है। प्रश्न -वहाँ ही क्यों किया; यहाँ क्यों नहीं किया? उत्तर –क्योंकि वहाँ यह कहा गया है कि आत्मा में संस्थान नहीं है; अत: वहाँ आत्मा में समचतुरस्र आदि छह संस्थानों का निषेध किया गया है। वहाँ असंस्थान की बात है और यहाँ अनिर्दिष्टसंस्थान की बात है। वहाँ संस्थानों के निषेध.की बात है और यहाँ संस्थान के बारे में कहे जाने के निषेध की बात है। - इस अन्तर को हमें समझना चाहिए। प्रश्न - आचार्य जयसेन ने तो इसी गाथा में 'समचतुरस्रादिषट्संस्थानरहितं' - ऐसा अर्थ किया है। उत्तर -किया है तो अच्छा ही किया है; पर उन्होंने आगामी ५०वीं गाथा में असंस्थान का भी यही अर्थ किया है। जयसेन ने असंस्थान और अनिर्दिष्टसंस्थान दोनों का एक ही अर्थ किया है और अमृतचन्द्र ने दोनों के अलग-अलग अर्थ किए हैं। प्रश्न -आप दोनों में से किस अर्थ को प्रमाण मानते हैं? उत्तर -हम दोनों ही अर्थों को प्रमाण मानते हैं; क्योंकि दोनों ही अर्थों के प्रयोजन में कोई अन्तर नहीं है। प्रश्न -फिर भी आप दोनों में अच्छा अर्थ किसे समझते हैं? उत्तर -आचार्यों की वाणी में अच्छे-बुरे का भेद हमें भासित नहीं होता। हमारा काम तो दोनों के ही कथनों से आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी के मर्म को समझना-समझाना है।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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