SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार अनुशीलन 366 एकत्व की दशा का निवारण किया है, उन्हें भिन्न-भिन्न जाना है; उसके बाद अनुभव के अभ्यास द्वारा कर्मों का नाश करके हर्षित हृदय से अपनी शुद्धता की संभाल की है; जिससे अन्तरायकर्म का नाश हुआ, शुद्ध आत्मा का प्रकाश हुआ अर्थात् केवलज्ञान हुआ, अतीन्द्रिय आनन्द का विलास हुआ; ज्ञान के उस विलास को, ज्ञान के उस उल्लास को, उल्लसित परिणमन को मेरा बारम्बार नमस्कार हो।" इसप्रकार ज्ञान को नमस्कार कर, स्मरण कर अब जीव और अजीव किसप्रकार एक होकर रंगभूमि में प्रवेश करते हैं - इस बात को गाथाओं द्वारा स्पष्ट करते हैं । तात्पर्य यह है कि अज्ञानी जीव किसप्रकार आत्मा के वास्तविक स्वरूप को न जानकर परपुद्गल को ही आत्मा मान लेते हैं - यह बात पाँच गाथाओं द्वारा बता रहे हैं। ज्ञान का कमाल ज्ञान सर्वसमाधान कारक है, उसका सर्वत्र ही अबाध प्रवेश है। वस्तुविज्ञान का ऐसा कौन-सा क्षेत्र है, जहाँ ज्ञान का प्रवेश न हो? ____ आज जगत में जो भी वैज्ञानिक चमत्कार दिखाई देते हैं, वे सब ज्ञान के ही कमाल हैं। यदि यही ज्ञान निज भगवान आत्मा में समर्पित हो जावे, उसकी ही शोध-खोज में लग जावे तो इससे भी अधिक चमत्कृत करेगा। जड़पदार्थों में लगे इस परोन्मुखी ज्ञान ने दैनिक-जीवन के लिए सुविधायें तो भरपूर जुटा दी, पर वह सुख और शान्ति नहीं जुटा सका। यदि हमें सच्चा सुख और शान्ति प्राप्त करनी है तो जड़पदार्थों की शोध-खोज में संलग्न अपने इस ज्ञान को वहाँ से हटाकर निज भगवान आत्मा की शोध-खोज में लगाना होगा। - आत्मा ही है शरण, पृष्ठ ६३
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy