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________________ समयसार अनुशीलन आचार्य अमृतचन्द्र की यह विशेषता है कि वे टीका में तो गाथा के मर्म को खोलते हैं, गाथा के भाव को तर्क और युक्तियों से सिद्ध करते हैं, उदाहरणों से पाठकों के गले उतारते हैं और कलशों के माध्यम से उसे जीवन में उतारने की प्रेरणा देते हैं । इसकारण कलशों की व्याख्या में अधिक कुछ कहने को नहीं होता; क्योंकि उन्हें जो कुछ कहना होता है, वह तो वे टीका में ही कह चुकते हैं, कलश में तो उसी की गहराई में जाने की बात कहते हैं । टीका लिखते समय आचार्य अमृतचन्द्र का बुद्धिपक्ष सजग रहता है और कलशों में उनका हृदय हिलोरे लेने लगता है । बुद्धि को तर्कवितर्क के माध्यम से वस्तु की गहराई में जाने की टेब होती है और हृदय में भावना का बेग उमड़ता है । यहीकारण है कि उनकी गद्यात्मक टीका में तत्त्व की गहराई से मीमांसा होती है और कलशों से हृदय को छ लेनेवाली पावन प्रेरणा प्राप्त होती है । इसप्रकार उनकी यह आत्मख्याति टीका एकप्रकार से चम्पूकाव्य बन गई है। चम्पूकाव्य की परिभाषा ही यही है "" 'गद्य-पद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते 188 काव्य को चम्पू कहते हैं । " - - गद्य और पद्यमय - यद्यपि चम्पूकाव्य का उपयोग मूलतः कथा साहित्य में पाया जाता है; जैसे – जीवन्धरचम्पू, पुरुदेवचम्पू आदि; क्योंकि इस विधा की प्रकृति कथासाहित्य के ही अनुकूल हैं; तथापि आचार्य अमृतचन्द्र ने इस टीकाग्रन्थ में भी इसका सफल प्रयोग किया है। आत्मानुभूति की पावन प्रेरणा देनेवाले इस कलश के बाद अब आगामी गाथा में कहते हैं कि जो व्यक्ति शुद्धनय के विषयभूत उक्त आत्मा की अनुभूति करता है, उसे जानता है, वह सम्पूर्ण जिनशासन को जानता है ।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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