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________________ 187 कलश १३ ( सवैया तेईसा ) सुद्धनयातम आतम की, अनुभूति विज्ञान-विभूति है सोई। वस्तु विचारत एक पदारथ, नाम के भेद कहावत दोई॥ यौं सरवंग सदा लखि आपुहि, आतम-ध्यान करै जब कोई। मेटि असुद्ध विभावदसा तब, सुद्ध सरूप की प्रापति होई॥ शुद्धनय के विषयभूत आत्मा की अनुभूति ही ज्ञानानुभूति है, विज्ञानविभूति है। वस्तुस्वरूप का विचार करने पर आत्मानुभूति और ज्ञानानुभूति दोनों एक ही हैं ; इनमें भेद तो मात्र नाम का ही है। इसप्रकार सदा सर्वांग स्वयं का अनुभव कर जब कोई आत्मध्यान करता है; तब उसे अशुद्धविभावदशा के अभावपूर्वक शुद्धस्वरूप की प्राप्ति होती है। यहाँ ज्ञान और आत्मा को एक मानकर ही बात की गई है। इसकारण आत्मा की अनुभूति को ही ज्ञान की अनुभूति कहा है । ज्ञान आत्मा का गुण है और आत्मा गुणी द्रव्य है। गुण-गुणी को अभेद मानकर आत्मानुभूति को ज्ञानानुभूति कहा है। ज्ञानगुण आत्मद्रव्य का लक्षण है । आत्मा की पहिचान ज्ञानगुण से ही होती है । इसलिए लक्ष्यलक्षण के अभेद से भी ज्ञान को आत्मा कहा जाता है। ___ शुद्धनय के विषयभूत भगवान आत्मा की अनुभूति ही आत्मानुभूति कहलाती है, इसकारण ही यहाँ आत्मानुभूति को शुद्धनयात्मिका कहा गया है। शुद्धनय और उसके विषयभूत भगवान आत्मा की चर्चा विस्तार से की जा चुकी है। अतः यहाँ उस पर विशेष प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है। यह कलश आगामी गाथा की उत्थानिकारूप कलश है । आगामी गाथा में आत्मानुभूति को समस्त जिनशासन की अनुभूति कहा गया है। अतः इस कलश में भी आत्मानुभूति की ही प्रेरणा दी गई है। यह कलश मूलतः प्रेरणा देनेवाला कलश ही है।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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