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________________ समयसार गाथा १५ जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुठं अणण्णमविसेसं। *अपदेससंतमझं पस्सादि जिणसासणं सव्व ॥१५॥ ( हरिगीत ) अबद्धपुट्ठ अनन्य अरु अविशेष जाने आत्म को। द्रव्य एवं भावश्रुतमय सकल जिनशासन लहे ॥१५॥ जो पुरुष आत्मा को अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, अविशेष (तथा उपलक्षण से नियत और अंसयुक्त) देखता है; वह सम्पूर्ण जिनशासन को देखता है । वह जिनशासन बाह्य द्रव्यश्रुत और अभ्यन्तर ज्ञानरूप भावश्रुतवाला १४वीं गाथा में शुद्धनय के विषयभूत भगवान आत्मा के जो पाँच विशेषण दिये गये हैं, उनमें से अबद्धस्पृष्ट, अनन्य और अविशेष - ये तीन विशेषण तो इस गाथा में वैसे के वैसे ही दुहराये गये हैं। इससे प्रतीत होता है कि वे इन विशेषणों के माध्यम से इस गाथा में भी उसी आत्मा की चर्चा कर रहे हैं, जिसकी चर्चा १४वीं गाथा में की गई थी; गाथा में स्थान न होने से नियत और असंयुक्त विशेषणों का उल्लेख नहीं हो पाया है। अत: उपलक्षण से इन्हें भी शामिल कर लेना उचित ही है। शुद्धनय के विषयभूत भगवान आत्मा के उक्त विशेषणों पर १४वीं गाथा में गहराई से मंथन हो चुका है। अत: अब यहाँ उन पर विशेष चर्चा करना आवश्यक नहीं है। यही कारण है कि आचार्य अमृतचन्द्र ने इस गाथा की आत्मख्याति में इनकी चर्चा विशेष नहीं की है, अपितु * पाठान्तर : अपदेशसुत्तमझं
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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