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रहस्य : रहस्यपूर्णचिट्ठी का श्रोता है और वह भी मनुष्य नहीं, पशु शेर और वक्ता हैं दो, वे भी महान सन्त मुनिराज । जरा सोचो कैसी होगी वह सभा ?
हजारों की संख्यावाली हमारी सभा अच्छी है या वह, जिसमें श्रोता तो एक था, पर वह अपना कल्याण करने में सफल हुआ। हमारी हजारों श्रोताओंवाली सभा में से एक भी नहीं सीझता ।
आज सन्तों की सार्वजनिक सभाओं में दस-दस हजार की भीड़ रहती है, पर उनमें कितने लोग जैनधर्म को स्वीकार करते हैं ?
मनोरंजन के लिए सुनने को आना अलग बात है और आत्मकल्याण की भावना से भगवान महावीर का मूल तत्त्वज्ञान समझने की भावना से सुनना अलग बात है ।
छात्रों में से कोई कहता है कि श्रोता तो थे, पर अच्छे लोग नहीं थे, पगड़ी-साफावाले थे, रात में खानेवाले थे, जमींकंद भी खाते थे ह्र ऐसे लोगों को हम क्या सुनाते ?
उन्हें समझाते हुए हम कहते हैं कि शेर जैसे क्रूर मांसाहारी तो नहीं थे । तात्पर्य यह है कि मुनिराजों ने तत्त्व की बात समझाने के पहले शेर पर कोई शर्तें नहीं लादी थीं। जिस स्थिति में शेर था, उसी स्थिति में सदुपदेश दिया था। कभी-कभी मुझे विकल्प आता है कि मुनिराजों को उपदेश देने के पहिले इतना तो कहना ही था कि जावो कुल्ला करके आओ, फिर हम कुछ समझायेंगे।
पहिले से ही शर्तें लगाने से हो सकता है कि कोई आपकी बात सुने ही नहीं । अरे, भाई ! सदाचारी बनाने के लिए भी तो समझाने का काम करना होगा। बिना समझाये हम किसी को सदाचारी भी कैसे बना सकते हैं ? कुल्ला करके आओ ह्र यह भी तो सुनाना ही है, सदुपदेश ही है।
मुझसे लोग कहते हैं कि आप आत्मा की ऊँची-ऊँची बातें करते हैं; पर आपको पता है कि आपके सामने सिर हिलानेवाले इन श्रोताओं का आचरण कैसा है ? आप क्या जानें इन्हें ? इन्हें तो हम जानते हैं कि ये क्या-क्या करते हैं ?
अरे, भाई ! हमें जानना भी नहीं है; क्योंकि जानकर भी हम क्या
दूसरा प्रवचन
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करेंगे ? किसी को प्रवचन सुनने से तो रोक नहीं सकते । हमारे पास ऐसा क्या उपाय है कि एक-एक श्रोता की जाँच कर सकें। जब हम हवाईजहाज से यात्रा करते हैं तो वहाँ सुरक्षा के लिए कुछ मशीनें लगी रहती हैं, जिनमें से हमें गुजरना पड़ता है। उनके द्वारा यह पता लग जाता है कि हमारे पास कोई खतरनाक हथियार तो नहीं है।
अब आप ही बताइये कि हमारे पास ऐसा कौनसा साधन है कि जिसके माध्यम से हम यह पता लगा सकें कि आप दुराचारी तो नहीं हैं ?
तीर्थंकरों की धर्मसभा (समोशरण) में मनुष्य और देवताओं के साथ शाकाहारी - मांसाहारी सभी पशु-पक्षी भी जाते थे तो हम अपनी सार्वजनिक सभा में किसी को आने से कैसे रोक सकते हैं, हमारे पास रोकने का साधन भी क्या है ?
इसप्रकार की रोक तीर्थकरों ने नहीं लगाई, सन्तों ने नहीं लगाई; लगाई होती तो भगवान महावीर बननेवाला शेर भी सदुपदेश से वंचित हो सकता था । आप ही बताओ इस संदर्भ में हम क्या कर सकते हैं ?
जब मैं यह कहता हूँ तो लोग कहते हैं कि तुम क्या चाहते हो; लोग माँस-मदिरा का सेवन करते रहें और तुम्हारा उपदेश सुनते रहें ?
अरे, भाई ! हम ऐसा क्यों चाहेंगे ? मुनिराजों का उपदेश सुनने के बाद उस शेर ने पूर्ण जिन्दगी माँस-मदिरा का सेवन नहीं किया ।
यदि उसे इसकारण नहीं सुनाते, नहीं समझाते; तो यह दिन भी कैसे आता ? उस शेर ने जीवनभर माँसभक्षण तो किया ही नहीं, अनछना पानी भी नहीं पिया।
क्या बात करते हो, उसके पास छन्ना तो था नहीं, लोटा भी नहीं था; फिर पानी कैसे छानता होगा वह ?
शास्त्रों में लिखा है कि जहाँ झरना हो, ऊपर से पानी गिर रहा हो तो वह पानी प्रासुक हो जाता, छना हुआ मान लिया जाता है। उक्त को वह पीता था, न मिले तो प्यासा ही रह जाता था ।
कठिनाई की बात तो यह है कि माँसाहारियों की आंतें और दाँत ऐसे