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‘समयसार पद्यानुवाद’, ‘अष्टपाहुड़ पद्यानुवाद', 'द्रव्यसंग्रह पद्यानुवाद', 'योगसार पद्यानुवाद' तथा 'प्रवचनसार पद्यानुवाद' ने भी समाज में अपार ख्याति अर्जित की है। 'कुन्दकुन्द शतक' तो विभिन्न रूपों में अबतक एक लाख से भी अधिक संख्या में समाज तक पहुँच चुका है। आपके द्वारा लिखित व सम्पादित लोकप्रिय महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों की सूची अन्यत्र दी गई है।
साहित्य व समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी गति अबाध है । तत्त्वप्रचार की गतिविधियों को निरन्तर गति प्रदान करनेवाली उनकी नित नई सूझ-बूझ, अद्भुत प्रशासनिक क्षमता एवं पैनी पकड़ का ही परिणाम है कि आज जयपुर आध्यात्मिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया है।
यह भी सबके लिए गौरव का विषय है कि दि. 8 अप्रैल 2001 को राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानन्दजी के पावन सान्निध्य में देश की राजधानी दिल्ली में लालकिले के मैदान में डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का अभिनन्दन समारोह सम्पन्न हुआ; जिसमें 'तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल' अभिनन्दन ग्रन्थ का लोकार्पण किया गया।
यही नहीं भारिल्लजी के एक शिष्य डॉ. महावीरप्रसाद टोकर ने 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व' विषय पर शोधकार्य कर सुखाड़िया वि. वि. उदयपुर से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है।
अध्यात्म जगत को जो अनेक सेवायें डॉ. भारिल्ल की प्राप्त हो रही हैं, उनका संक्षिप्त विवरण इसप्रकार है
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श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ के मुखपत्र आत्मधर्म को हिन्दी, मराठी, कन्नड़ और तमिल - इन चार संस्करणों का सम्पादन तो पूर्व में आपके द्वारा हुआ ही है; किन्तु जयपुर से प्रकाशित होनेवाले हिन्दी आत्मधर्म का प्रकाशन किन्हीं कारणों से अवरुद्ध हो जाने के कारण, उसी के स्थान पर पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर द्वारा प्रकाशित 'वीतराग - विज्ञान' हिन्दी एवं मराठी के अब आप सम्पादक हैं।
श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय के तो आप प्राण ही हैं। उक्त विद्यालय ने अल्पकाल में ही समाज में अभूतपूर्व प्रतिष्ठा प्राप्त की है। अब समाज को यह आशा बंध गई है कि इसके द्वारा विलुप्त प्रायः हो रही पण्डित - पीढ़ी को नया जीवनदान मिलेगा। अबतक टोडरमल महाविद्यालय के माध्यम से 387 जैनदर्शन शास्त्री विद्वान समाज को प्राप्त हो चुके हैं। भविष्य में भी लगभग 25 शास्त्री विद्वान समाज को प्रतिवर्ष प्राप्त होते रहेंगे। वर्तमान में यहाँ 160 छात्र अध्ययन कर रहे हैं।