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सभी पंचकल्याणकों के अवसर पर हजारों की संख्या में जन-जन तक पहुँचती है और इसकी माँग निरन्तर बनी ही रहती है।
जिसप्रकार डॉ. भारिल्ल द्वारा लिखित 'धर्म के दशलक्षण' प्रत्येक पर्युषण में लगभग तीन हजार बिकती है, उसीप्रकार यह भी प्रत्येक पंचकल्याणक में हजारों की संख्या में बिकती है। ____ डॉ. भारिल्ल उन प्रतिभाशाली विद्वानों में हैं, जो आज समाज में सर्वाधिक पढ़े एवं सुने जाते हैं। वे न केवल लोकप्रिय प्रवचनकार एवं कुशल अध्यापक ही हैं; अपितु सिद्धहस्त लेखक, कुशल कथाकार, सफल सम्पादक एवं आध्यात्मिक कवि भी हैं।
आपने क्रमबद्धपर्याय' एवं परमभावप्रकाशकनयचक्र' जैसीगूढ़ दार्शनिक विषयों को स्पष्ट करनेवाली कृतियाँ लिखीं, जिन्होंने आगम एवं अध्यात्म के गहन रहस्यों को सरल भाषा व सुबोधशैली में प्रस्तुत कर आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजीस्वामी द्वारा व्याख्यायित जिन-सिद्धान्तों को जन-जन तक पहुंचाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। यही कारण है कि स्वामीजी की उन पर कृपा रही है। वे अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में कहा करते थे, ‘पण्डित हुकमचन्द का वर्तमान तत्त्वप्रचार में बड़ा हाथ है।'
उत्तमक्षमादि दश धर्मों का विश्लेषण जिस गहराई से आपने धर्म के दशलक्षण' पुस्तक में किया है, उसने जनसामान्य के साथ-साथ विद्वद्वर्ग का भी मन मोह लिया। जिसे पढ़कर वयोवृद्ध व्रती विद्वान पण्डित श्री जगनमोहनलालजीशास्त्री कह उठे थे'डॉ. भारिल्ल की लेखनी को सरस्वती का वरदान है।'
'सत्य की खोज', 'तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ', 'मैं कौन हूँ और 'पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व' भी अपने-आप में अद्भुत कृतियाँ हैं। अधिक क्या लिखें, उनका सम्पूर्ण साहित्य ही आत्महितकारी होने से बार-बार पढ़ने योग्य है। इनके अतिरिक्त बारह भावना : एक अनुशीलन', पद्यमय 'बारह भावना तथा 'जिनेन्द्र वन्दना' एवं 'गागर में सागर' भी हमने प्रकाशित की हैं। अभी हाल में प्रकाशित 'समयसार : अनुशीलन', 'चिन्तन की गहराईयाँ', 'बिखरे मोती', 'सूक्ति-सुधा', 'बिन्दु में सिन्धु', मैं स्वयं भगवान हूँ, गोली का जबाब गाली से भी नहीं', 'दृष्टि का विषय', ‘णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन', 'समयसार का सार', प्रवचनसार अनुशीलन भाग-1' तथा प्रवचनसार का सार' आपकी नवीनतम कृतियाँ हैं। ये सभी अपने आप में अनूठी कृतियाँ हैं। ___ आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी समारोह के पावन प्रसंग पर प्रकाशित डॉ. भारिल्ल की नवीनतम कृतियों-'आचार्यकुन्दकुन्द और उनके पंचपरमागम', 'कुन्दकुन्दशतक',