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श्रीमद् पद्मप्रभमलधारिदेवकृत तात्पर्यवृत्ति संस्कृत टीका
एवं डॉ. हुकमचन्द भारिल्लकृत आत्मप्रबोधिनी हिन्दी टीका
सहित श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवविरचित नियमसार मंगलाचरण
(अडिल्ल) पुण्य-पाप से पार अनघ यह आतमा।
__ और ज्ञानमय निज कारणपरमातमा ।। यह परमतत्त्व परमारथ अक्षय आतमा।
निर्विकार निर्ग्रन्थ अलौकिक आतमा ||१|| इसी त्रिकाली ध्रुव आतम को जानना।
अज अविनाशी आतम को पहिचानना ।। और इसी में जमना-रमना धर्म है।
अन्य न कुछ बस यही धर्म का मर्म है।।२।। इसी एक में अपनापन सम्यक्त्व है।
इसी एक का ज्ञान-ध्यान चारित्र है।। इसको ही नित हितकारक पहिचानिये।
इसमें ही सब धर्म समाहित जानिये ||३||