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नयचक्र प्रश्नोत्तर
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अध्यात्म के नय प्रश्न २६. साक्षात् शुद्ध निश्चयनय किसे कहते हैं? प्रश्न २७. परम शुद्ध निश्चयनय किसे कहते हैं? प्रश्न २८. उपचरित सद्भूत व्यवहारनय और अशुद्ध निश्चयनय में क्या
अन्तर है? प्रश्न २९. द्रव्यस्वभाव ग्रहण करनेवाला कौनसा नय है? प्रश्न ३०. पर्याय स्वभाव ग्रहण करनेवाले कौनसे नय हैं? प्रश्न ३१. निम्न कथन किस नय के हैं ह्र
१. देश मेरा है। २.मैं हँसता हैं। ३. रुपये-पैसे मेरे हैं। ४. मैं बुद्धिमान हूँ। ५. मेरा प्रतिबिम्ब है। ६. सर्व जीव हैं सिद्ध सम। ७. मम स्वरूप है सिद्ध समान। ८. मुझे अपने भाई से बहुत ही स्नेह है। ९. मुझे अपनी बहन से बहुत ही स्नेह है। १०. मुझमें ज्ञान है। ११. ज्ञान आत्मा का गुण है। १२. बाहुबली केवलज्ञानी है। १३. सिद्ध समान सदा पद मेरो। १४. कारण शुद्ध जीव। १५. कार्य शुद्ध जीव। १६. वह सम्यग्दृष्टि है। १७. तीर्थंकर जन्म से पर्याय में सम्यग्दृष्टि होते हैं। १८. जीव अकत्री है - अभोक्ता हैं। १९. मैं क्रोधी हूँ। २०.जीव के बंध-मोक्ष होते ही नहीं।
नयचक्र प्रश्नोत्तर प्रश्न १. नयों का स्वरूप समझना आवश्यक क्यों है? उत्तर : १) जिनागम को समझने के लिए।
२) वस्तुस्वरूप के सच्चे ज्ञान के लिए। ३) (अनेकान्त स्वरूप) आत्मा के सही के लिए। ४) आत्मानुभव के लिए। ५) सांसारिक दुःखों से बचने के लिए। ६) मिथ्यात्व के नाश के लिए।
७) सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए। प्रश्न २. नय अंशग्राही होते हैं या सर्वग्राही? उत्तर : अंशग्राही। प्रश्न ३. नय अंशग्राही क्यों होते हैं? उत्तर : नयों की प्रवृत्ति वस्तु के एकदेश में ही होती है अतः नयों को
अंशग्राही कहते हैं। प्रश्न ४. समस्त वस्तुओं का स्वरूप कैसा है? उत्तर : अनेकान्तात्मक। प्रश्न ५. क्या अनन्तधर्मात्मक वस्तु को एक साथ जाना जा सकता है? उत्तर : हाँ। प्रश्न ६. क्या अनंतधर्मात्मक वस्तु को एक साथ कहा जा सकता है? उत्तर : नहीं। प्रश्न ७. नयों का कथन सापेक्ष होता है या निरपेक्ष? उत्तर : सापेक्ष। प्रश्न ८. विविक्षित धर्म किसे कहते हैं? उत्तर : मुख्य धर्म को। प्रश्न ९. अविविक्षित धर्म किसे कहते हैं? उत्तर : गौण धर्म को।
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