________________
णमोकार महामंत्र : एक अनुशीलन या उससे भी ऊपर हैं। अत: यह सुनिश्चित है कि ‘णमो लोए सव्वसाहणं' में वीतरागी भावलिंगी जैन सन्त ही आते हैं; क्योंकि जैन परिभाषा के अनुसार वे ही लोक के सर्वसाधु हैं, अन्य नहीं।
सामान्यरूप से पंचपरमेष्ठी का स्मरण करना, नमस्कार करना प्रत्येक जैन का प्राथमिक कर्तव्य है; जिसे प्रत्येक जैन प्रतिदिन णमोकार महामंत्र के जाप के माध्यम से निभाता ही है और निभाना भी चाहिए।
जिनसे हमारा उपकार न हुआ हो, जिनसे हमारा साक्षात् परिचय भी न हो; पर जो भी परमपद में स्थित हैं, पंचपरमेष्ठी में आते हैं; वे सभी हमारे लिए समानरूप से पूज्य हैं, उनमें भेदभाव करना उचित नहीं है। उन सभी को समानरूप से स्मरण करना ही णमो लोए सव्वसाहूणं' पद का मूल प्रयोजन है। __हमारे प्रत्यक्ष उपकारी तो वे ज्ञानी गृहस्थ धर्मात्मा भी हो सकते हैं,
जो अभी पंचपरमेष्ठी में शामिल नहीं हैं। वे भी पूज्य तो हैं ही, पर पंचपरमेष्ठी के समान पूज्य नहीं। अष्टद्रव्य से पूज्य तो पंचपरमेष्ठी ही हैं। उन्हीं को णमोकार महामंत्र में स्थान प्राप्त है, ज्ञानी गृहस्थ धर्मात्माओं को नहीं। __इस सन्दर्भ में एक बात और भी उल्लेखनीय है कि णमोकार महामंत्र की महिमा बतानेवाली गाथा में णमोकार मंत्र को सब पापों का नाश करनेवाला कहा गया है। वह गाथा मूलतः इसप्रकार है -
एसो पंच णमोयारो सव्व पावप्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होहि मंगलम् ।। यह नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करनेवाला और सब मंगलों में पहला मंगल है। __इस गाथा के अर्थ समझने में भी भारी भूल होती है। सब पापों का नाश करने का अर्थ यह समझा जाता है कि भूतकाल में हमने जो भी पाप किए हैं, इस महामंत्र के उच्चारण मात्र से उन सबका नाश बिना फल दिए ही हो