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एकता की अपील
लिस्टर ( इग्लेंड) में होनेवाले पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर पंचकल्याणक समिति एवं जैन शोसल ग्रुप के तत्त्वावधान में 21 जुलाई, 1988 ई. से 23 जुलाई, 1988 ई. तक जैन विश्व कॉन्फ्रेन्स आयोजित थी। इसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश के अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे, जिनमें भट्टारक श्री चारुकीर्तिजी, श्रवणबेलगोला (कर्नाटक ) सर्वश्री श्रेणिकभाई कस्तूरभाई अहमदाबाद, साहू अशोककुमारजी जैन दिल्ली, दीपचंदजी गार्डी बम्बई, सी. एन. संघवी बम्बई, रतनलालजी गंगवाल कलकत्ता एवं निर्मलकुमारजी सेठी लखनऊ आदि प्रमुख थे।
विश्व जैन कॉन्फ्रेन्स के जिस सत्र में मेरा व्याख्यान था, उस सत्र का संयोजन श्री निर्मलकुमारजी सेठी को करना था । अतः हम एक साथ स्टेज पर तो थे ही, उन्होंने ही उपस्थित समाज को मेरा परिचय भी दिया था। उस सभा मैंने जैन समाज की एकता एवं शाकाहार पर विचार व्यक्त किये थे, जिनका संक्षिप्त सार इसप्रकार है -
आज अत्यन्त प्रसन्नता की बात है कि इस महान उत्सव में जैनसमाज के सभी सम्प्रदाय एकत्रित हैं और मिलजुलकर सभी कार्य सम्पन्न कर रहे हैं।
मलिन वस्तुओं को भी निर्मल कर देनेवाला गंगा का अत्यन्त निर्मल जल भी जब घड़ों में कैद हो जाता है तो दूसरों को पवित्र कर देने की उसकी क्षमता तो समाप्त हो ही जाती है, वह स्वयं ही दूसरों के छू लेने मात्र से अपवित्र होने लगता है।
गंगा के पवित्र जल में बिना किसी भेदभाव के सभी नहाते हैं और अपने को पवित्र अनुभव करते हैं, परन्तु जब लोग गंगा का जल अपने घड़ों में भर