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________________ मोक्षमार्गप्रकाशक का सार पहला प्रवचन मंगलाचरण (दोहा) मंगलमय मंगलकरण, वीतराग-विज्ञान । नमौं ताहि जातें भये, अरहंतादि महान ।। पण्डितों के पण्डित महापण्डित आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी और उनकी कालजयी क्रान्तिकारी कृति मोक्षमार्गप्रकाशक जैनदर्शन के अमूल्य रत्न हैं। जिनागम को समझने में जो भूलें अज्ञानी जगत करता है, उन भूलों को निकालनेवालों को पण्डित कहा जाता है; पर पण्डित टोडरमलजी उन पण्डितों में हैं; जिन्होंने न केवल अज्ञानी जगत की भूलों को निकाला, अपितु जो अपने को जिनागम का अभ्यासी समझते हैं; फिर भी उसका मर्म नहीं समझ पाने से सद्धर्म को तो प्राप्त नहीं कर पाते, अपितु बाह्य क्रियाकाण्ड में उलझकर रह जाते हैं; उनके द्वारा की जानेवाली भूलों की ओर ध्यान दिलाकर उनका भी मार्गदर्शन किया है। मोक्षमार्गप्रकाशक के सातवें और आठवें अधिकार इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। यही कारण है कि मैं उन्हें पण्डितों के पण्डित कहता हूँ। यद्यपि वे आचार्य नहीं थे, पर उन्होंने सत्साहित्य के क्षेत्र में आचार्यों के समान महान कार्य किया है; इसकारण उन्हें आचार्यकल्प कहा जाता है। ऐसे पण्डित तो इस लोक में बहुत मिलेंगे, जिन्होंने शास्त्रों को पढ़ा है; पर ऐसे पण्डित मिलना दुर्लभ हैं, जिन्होंने शास्त्रों के साथ-साथ आत्मा को भी पढ़ा हो। कदाचित् ऐसे पण्डित भी मिल जायेंगे कि
SR No.009458
Book TitleMoksh Marg Prakashak ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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