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________________ जिनधर्म-विवेचन १७४. शंका- क्या अकृत्रिम जिन-मन्दिर और जिन-बिम्बों में भी परिवर्तन होता रहता है? समाधान - हाँ, उनमें भी परिवर्तन होता ही रहता है; पर इतना विशेष समझना चाहिए कि उनमें होनेवाला परिवर्तन सदृश्य परिणमनरूप कहलाता है। १५२ सादि - अनन्त ऐसे अनन्त सिद्ध भगवन्तों के जीवद्रव्य में भी प्रतिसमय परिवर्तन होता ही रहता है। द्रव्यत्वगुण, सामान्यगुण है अर्थात् वह सभी द्रव्यों में पाया जाता है। यदि एक बार हम इस व्यवस्था को स्वीकार कर लेते हैं तो हमारी सभी शंकाएँ दूर हो जाती हैं। अनन्तानन्त सभी द्रव्यों में प्रतिसमय परिवर्तन तो होता ही होता है; उसमें कोई भी द्रव्य अपवाद रीति से भी छूट नहीं सकता। वस्तु-व्यवस्था में छूट कैसी ? छूट लेना या देना तो रागवश किया जानेवाला कार्य है। माता / बहिनें, रागवश अपने पास अनेक साड़ियाँ रखती हैं; उनमें से कुछ साड़ियों का उपयोग तो वर्ष में दो-तीन बार ही कर पाती हैं; फिर भी समय पाकर वे साड़ियाँ फटने लगती हैं। इसका कारण द्रव्यत्वगुण से होनेवाला परिणमन ही समझना चाहिए। यह स्वीकार करने से परपदार्थों में कर्तृत्वबुद्धि का नाश हो जाता है। परपदार्थों में होनेवाला परिवर्तन, उस पदार्थ में स्थित द्रव्यत्वगुण के कारण ही होता है, मेरे कारण नहीं। इस तरह द्रव्यत्वगुण के निर्णय के कारण कर्ताबुद्धि का सहज ही अभाव हो जाता है। कोई व्यक्ति, रसोई के उपयोग के लिए बड़ी कुल्हाड़ी के द्वारा किसी बड़ी लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े करना चाहता है। देखनेवाली बात यह है कि यदि कुल्हाड़ी से लकड़ी के टुकड़े होते हों तो एक ही बार लकड़ी पर कुल्हाड़ी पटकने से लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो जाना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। प्रथम बार कुल्हाड़ी पटकने पर तो मात्र सामान्य निशान बन पाता है। उसके पश्चात् उसी निशान पर बार-बार कुल्हाड़ी (77) द्रव्यत्वगुण - विवेचन १५३ पटकने पर लकड़ी में थोड़ी दरार बन जाती है। फिर वह व्यक्ति, उसी दरार में लकड़ी का खूँटा फँसा कर, उस पर पुनः पुनः कुल्हाड़ी पटकता रहता है। - ऐसा करने पर मात्र लकड़ी के दो टुकड़े हो पाते हैं। ऐसा पुनः पुनः करने पर ही लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े होते हैं। लकड़ी के टुकड़े होने का कार्य लकड़ी के द्रव्यत्वगुण के कारण हुआ है, अन्य किसी से नहीं; क्योंकि लकड़ीगत परिवर्तन में कारण लकड़ी का द्रव्यत्वगुण ही है। १७५. शंका - लकड़ी के टुकड़े होने का कार्य, व्यक्ति और कुल्हाड़ी के निमित्त से हुआ है ऐसा कहने में आपको संकोच क्यों हो रहा है? निमित्त का कथन करने में आपको भय लगता है क्या? समाधान - अरे भाई! निमित्त का कथन करने में न हमें कोई संकोच है, न भय; क्योंकि निमित्त का कथन तो सर्व ज्ञानियों ने सर्वत्र किया है। किसी भी कार्य के होने में निमित्त कारण तो होता है, उसे स्वीकार करना ही चाहिए। हम भी निमित्त को निमित्तरूप से स्वीकार करते ही हैं। पर भाई! यहाँ विषय द्रव्यत्वगुण का चल रहा है; अतः हम द्रव्यत्वगुण की मुख्यता से ही कथन करना चाहते हैं। जिसकी मुख्यता होती है, उसका कथन करना ही न्यायसंगत है। २. दूसरी बात यह है कि सारे जगत् की दृष्टि निमित्त की मुख्यता करने की है। अनादिकाल से हम यह जानते आ रहे हैं कि कुल्हाड़ी के निमित्त से लकड़ी के टुकड़े-टुकड़े होते हैं, परन्तु यह संयोगदृष्टि है। संयोगदृष्टि में तो संसार ही खड़ा रहता है। द्रव्यत्वगुण के कारण लकड़ी के टुकड़े होते हैं - यह कथन स्वभावदृष्टि का है। स्वभावदृष्टि से ही संसार का नाश होता है; अतः लकड़ी के टुकड़े होने के कार्य का मूल कारण द्रव्यत्व गुण को मानना ही उचित है। ३. लकड़ी के टुकड़े होने में कौन निमित्त है? ऐसा निमित्त की ओर से प्रश्न हो तो उत्तर में हम निमित्तों का ज्ञान कराने के लिए अवश्य कहेंगे
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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