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________________ १३६ जिनधर्म-विवेचन मैं जीवद्रव्य किसी का उत्पाद्य हूँ अर्थात् किसी से मैं बनाया गया हूँ - ऐसा विचार होने पर हीनभाव / दीनता का भाव आना स्वाभाविक है । जिसने मुझे उत्पन्न किया है, उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए - ऐसा विचार सहज ही उत्पन्न होता है, किन्तु वस्तुस्वरूप यह है कि मैं स्वयमेव ही सहज स्वयंसिद्ध हूँ, अतः दीनभाव / हीनभाव उदित भी नहीं हो सकता । १५१. प्रश्न अस्तित्वगुण की सिद्धि कैसे होती है ? उत्तर - १. पुनर्जन्म की अनेक घटनाएँ शास्त्र में पढ़ने को मिलती है। २. अभी वर्तमानकाल में भी अनेक लोगों से पुनर्जन्म की जानकारी मिलती है; इससे जीव के अस्तित्व की सिद्धि होती है। ३. शरीर के परिवर्तन से भी हमें अस्तित्व की सिद्धि समझ में आती हैं। जो शरीर बचपन में छोटा रहता है; वही शरीर, क्रम से लम्बा-चौड़ा एवं बलवान होता जाता है। ४. कुछ विशिष्ट काल बीत चुकने पर युवावस्था का मोटा शरीर धीरे-धीरे क्षीण होता जाता है, लेकिन जन्म से मरणपर्यन्त एक ही शरीर रहता है, इससे उसकी नित्यता का ज्ञान होता है। ५. शरीर नष्ट होने पर भी जिनसे शरीर बना था, उन परमाणुओं का सर्वथा नाश तो होता ही नहीं, इससे पुद्गल की नित्यता भी समझ में आती है। परमात्मप्रकाश शास्त्र में मुनिराज योगीन्दुदेव का कथन भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है; वे अधिकार १, गाथा ५६ में लिखते हैं “यह आत्मा किसी से भी उत्पन्न नहीं हुआ और इस आत्मा से भी कोई अन्य द्रव्य उत्पन्न नहीं हुआ । द्रव्य, स्वभाव से नित्य जानो, जबकि पर्यायभाव से विनाशीक है।" इसप्रकार 'अस्तित्वगुण' का ११ प्रश्नोत्तर के साथ विवेचन पूर्ण होता है। · (69) वस्तुत्वगुण - विवेचन ॥ मङ्गलाचरण ।। वस्तुत्वगुण के योग से हो, द्रव्य में स्व-स्व क्रिया; स्वाधीन गुण - पर्याय का ही, पान द्रव्यों ने किया । सामान्य और विशेषता से, कर रहे निज काम को; यों मानकर वस्तुत्व को, पाओ विमल शिवधाम को ।। इस वस्तुत्वगुण के कारण ही प्रत्येक द्रव्य में हमेशा अपने-अपने स्वभाव के अनुसार कार्य होता रहता है; अतः सभी (अनन्तानन्त) द्रव्यों ने अपने-अपने गुण-पर्यायों का मानों रसपान ही कर लिया है। एक वस्तुत्वगुण के कारण ही द्रव्य, अपने-अपने सभी सामान्य अथवा विशेष कार्य करता है । इसतरह सत्यार्थ वस्तु-स्वभाव को जानकर / मानकर भव्य जीव ज्ञाता दृष्टा होकर पावन शिवधाम को प्राप्त करें। १५२. प्रश्न – अस्तित्वगुण के तुरन्त बाद वस्तुत्वगुण का कथन क्यों किया है? वस्तुत्वगुण को दूसरा क्रमांक देने में कोई कारण है क्या ? उत्तर - १. अस्तित्वगुण के कारण द्रव्य की सत्ता तो सिद्ध हो जाती है; परन्तु उससे द्रव्य के स्वभाव का पता नहीं चला; अतः प्रत्येक द्रव्य के स्वभाव का निर्णय करने के लिए वस्तुत्वगुण का कथन किया है। २. मैं जीव, जानना - देखना छोड़कर अन्य कोई कार्य (जैसे, समाज का सुधार, देशोद्धार, शरीर को स्वस्थ रखना आदि ) कर सकता हूँ - ऐसी अज्ञानी की विपरीत मान्यता दूर करने के लिए वस्तुत्वगुण का कथन किया जाता है। - ३. जीव को अपनी जानन देखनस्वरूप सीमा का ज्ञान कराने के लिए वस्तुत्वगुण का कथन किया गया है। ४. जीवादि प्रत्येक द्रव्य का अपना-अपना स्वतन्त्र स्वभाव अर्थात् कार्य है, कोई भी द्रव्य व्यर्थ अर्थात् बेकार नहीं है - ऐसा ज्ञान कराने के लिए अस्तित्व के पश्चात् वस्तुत्वगुण का कथन किया जा रहा है।
SR No.009455
Book TitleJin Dharm Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Rakesh Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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