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जिनवर कहें 'देहादि पर' जो उन्हें ही निज मानता । संसार-सागर में भ्रमें वह प्रातमा बहिरातमा ॥१०॥ 'देहादि पर' जिनवर कहें ना हो सकें वे श्रातमा । यह जानकर तू मान ले निज श्रातमा को श्रातमा ॥ ११ ॥ तू पायगा निर्वारण माने श्रातमा को प्रातमा । पर भवभ्रमरण हो यदी जाने देह को ही प्रातमा ||१२|| श्रातमा को जानकर इच्छारहित यदि तप करे । तो परमगति को प्राप्त हो संसार में घूमे नहीं ॥ १३ ॥ परिणाम से ही बंध है पर मोक्ष भी परिणाम से । यह जानकर हे भव्यजन ! परिणाम को पहिचानिये ||१४||