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भयभीत है यदि चर्तुगति से त्याग दे परभाव को। परमातमा का ध्यान कर तो परमसुख को प्राप्त हो ॥५॥ बहिरातमापन त्याग जो बन जाय अन्तर-प्रातमा । ध्यावे सदा परमातमा बन जाय वह परमातमा ।। ६ ।। मिथ्यात्वमोहित जीव जो वह स्व-पर को नहिं जानता। । संसार-सागर में भ्रमें दृगमूढ़ वह बहिरातमा ॥७॥
जो त्यागता परभाव को अर स्व-पर को पहिचानता। । है वही पण्डित आत्मज्ञानी स्व-पर को जो जानता ॥८॥ __ जो शुद्ध शिव जिन बुद्ध विष्णु निकल निर्मल शान्त है।
बस है वही परमातमा जिनवर-कथन निन्ति है ।। ६ ।।