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योगसार पद्यानुवाद सब कर्ममल का नाशकर पर प्राप्त कर निज-पातमा ।
जो लीन निर्मल ध्यान में नमकर निकल परमातमा ॥१॥ :सब नाशकर घनघाति अरि अरिहंत पद को पालिया। सकर नमन उन जिनदेव को यह काव्यपथ अपना लिया ॥२॥ है मोक्ष की अभिलाष पर भयभीत हैं संसार से । है समर्पित यह देशना उन भव्य जीवों के लिए ॥३॥ ' अनन्त है संसार-सागर जीव काल अनादि हैं। पर सुख नहीं, वस दुःख पाया मोह-मोहित जीव ने ॥ ४॥