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नासान दृष्टिवंत हो देखें अदेही जीव को। वे जनम धारण ना करें ना पिये जननी-क्षीर को ॥६॥ अशरीर को सुशरीर पर इस देह को जड़ जान लो। सब छोड़ मिथ्या-मोह इस जड़देह को पर मान लो ॥६॥ अपनत्व प्रातम में रहे तो कौन सा फल ना मिले ? बस होय केवलज्ञान एवं अखय प्रानन्द परिणमे ॥१२॥ परभाव को परित्याग जो अपनत्व प्रातम में करें। वे लहें केवलज्ञान अर संसार-सागर परिहरें ॥३॥ हैं धन्य वे भगवन्त बुध परभाव जो परित्यागते । जो लोक और प्रलोक ज्ञायक प्रातमा को जानते ॥६४॥