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श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला
अर्थात् मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग - यह पाँच कर्मबन्ध के कारण हैं। (मोक्षाशस्त्र, अध्याय -8, सूत्र - 1)
प्रश्न 90 - मिथ्यादर्शन (मिथ्यात्व) किसे कहते हैं ?
उत्तर - प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वों के विपरीत श्रद्धान को तथा अदेव (कुदेव) को देव मानना, अतत्त्व को तत्त्व मानना, अधर्म (कुधर्म) को धर्म मानना, इत्यादि विपरीत श्रद्धान को मिथ्यात्व कहते हैं। (वह श्रद्धा गुण की विपरीत पर्याय है।)
प्रश्न 91 - मिथ्यादर्शन के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर - दो प्रकार हैं - 1. अगृहीत मिथ्यात्व और 2. गृहीत मिथ्यात्व।
1. अगृहीत मिथ्यात्व - जीव, परद्रव्य का कुछ कर सकता है या शुभविकल्प से आत्मा को लाभ होता है - ऐसी अनादिकालीन मान्यता मिथ्यात्व है, और वह किसी के सिखाने से नहीं हुआ है, इसलिए अगृहीत है।
2. गृहीत मिथ्यात्व - जन्म होने के पश्चात् परोपदेश के निमित्त से जीव जो अतत्त्व श्रद्धा ग्रहण करता है, उसे गृहीतमिथ्यात्व कहते हैं।
[अगृहीत] मिथ्यात्व को निसर्गज मिथ्यात्व और गृहीत मिथ्यात्व को बाह्य प्राप्त मिथ्यात्व भी कहते हैं। जिसे गृहीत मिथ्यात्व हो, उसे अगृहीत मिथ्यात्व तो होगा ही।
प्रश्न 92 - गृहीत मिथ्यात्व के कितने भेद हैं ? उत्तर - पाँच भेद हैं - (1) एकान्त मिथ्यात्व, (2) विपरीत