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________________ 100 प्रकरण तीसरा मिथ्यात्व, (3) संशय मिथ्यात्व, (4) अज्ञान मिथ्यात्व और (5) विनय मिथ्यात्व। 1. एकान्त मिथ्यात्व - आत्मा, परमाणु आदि पदार्थों का स्वरूप अनेकान्तमय (अनेक धर्मोंवाला) होने पर भी उन्हें सर्वदा एक ही धर्मवाला मानना, वह एकान्त मिथ्यात्व है; जैसे कि - आत्मा को सर्वथा क्षणिक अथवा सर्वथा नित्य ही मानना; गुणगुणी का सर्वदा भेद या अभेद मानना आदि। 2. विपरीत मिथ्यात्व - आत्मा के स्वरूप को अन्यथा मानने की रुचि को विपरीत मिथ्यात्व कहते हैं; जैसे कि - (1) शरीर को आत्मा मानना (2) वस्त्र-पात्रादि सहित को (सग्रन्थ को) निर्ग्रन्थ गुरु मानना। (3) स्त्री का शरीर होने पर भी उसे मुनिदशा और मोक्ष मानना। (4) केवली भगवान को ग्रासाहार (कवलाहार), रोग, उपसर्ग, वस्त्र, पात्र, पाटादि सहित तथा क्रमिक उपयोग मानना। (5) पुण्य से अर्थात् शुभराग से तथा निमित्त से धर्म मानना आदि। 3. संशय मिथ्यात्व - 'धर्म का स्वरूप ऐसा है अथवा वैसा है?' इस प्रकार परस्पर विरुद्ध दोनोंरूप श्रद्धान को संशय मिथ्यात्व कहते हैं; जैसे कि - आत्मा अपने कार्य का कर्ता होगा या परवस्तु के कार्य का कर्ता होता होगा? निमित्त और व्यवहार के अवलम्बन से धर्म होगा या अपने शुद्धात्मा के आलम्बन से? - इत्यादि प्रकार का संशय रहना।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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