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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 4. अज्ञान मिथ्यात्व - जहाँ हित-अहित का कोई विवेक न हो, अथवा किसी प्रकार की परीक्षा किये बिना धर्म की श्रद्धा करना, वह अज्ञानी मिथ्यात्व है; जैसे कि - पशु-वध या पाप में धर्म मानना । 5. विनय मिथ्यात्व समान मानना, वह विनय मिथ्यात्व है । 101 समस्त देवों समस्त धर्ममतों को (सर्व प्रकार के बन्ध का मूल कारण मिथ्यात्व है । सर्व प्रथम वह दूर हुए बिना अविरति आदि बन्ध कारण भी दूर नहीं होते, इसलिए सर्व प्रथम गृहीत और गृहीत मिथ्यात्व को दूर करना चाहिए।) प्रश्न 93 - अविरति किसे कहते हैं ? उत्तर- (1) (चारित्र के विषय में) निर्विकार स्वसंवेदन से विपरीत अव्रत परिणामस्वरूप विकार को अविरति कहते हैं । (2) षट्काय के जीवों की (पाँच स्थावर जीव और एक त्रस जीव की) हिंसा के त्यागरूप भाव न करना तथा पाँच इन्द्रियाँ और मन के विषयों में प्रवृत्ति करना - ऐसे बारह प्रकार की अविरति है । प्रश्न 94- प्रमाद किसे कहते हैं ? उत्तर अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरणीय और प्रत्याख्यानावरणीय (क्रोध, मान, माया, लोभ) के उदय में युक्त होने से तथा संज्वलन और नोकषाय के तीव्र उदय में युक्त होने से निरतिचार चारित्र के पालन में निरुत्साह तथा स्वरूप की असावधानी को प्रमाद कहते हैं। छठवें गुणस्थान में संज्वलन और नो कषाय के तीव्र उदय में युक्त होनेरूप प्रमाद होता है।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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