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________________ प्रकरण तीसरा इच्छा के बिना भी केवलज्ञानी की वाणी खिरती है; सशक्त मनुष्य जिस समय बोलने की इच्छा करे, उसी समय कभी-कभी भाषा नहीं बोल सकता। जिसे लकवा हो अथवा जो तोतला हो, वह मनुष्य व्यवस्थितरूप से बोलने की बहुत इच्छा करता है, फिर भी व्यवस्थित भाषा नहीं निकलती। जब पुद्गल की भाषारूप परिणमित होने की योग्यता हो, तभी भाषा निकलती है और तभी इच्छादि निमित्तभूत होते हैं। प्रश्न 88 - तीर्थङ्कर भगवान को इच्छा नहीं है, फिर भी योग के कारण वाणी खिरती है, वह सच है ? उत्तर - नहीं, क्योंकि वहाँ भी पुद्गल की शक्ति की योग्यता से वाणीरूप पर्याय उसके अपने काल में ही होती है। वाणी हो, तब योग तो निमित्तमात्र है। जीव के योग गुण की पर्याय और पुद्गल की शक्ति में अत्यन्त अभाव है। यदि योग से वाणी होती हो तो तेरहवें गुणस्थान में उनके निरन्तर योग गुण का कम्पन है, इसलिए निरन्तर वाणी होना चाहिए, किन्तु ऐसा तो होता नहीं है। __ और मूककेवली योगसहित हैं, तथापि उनके वाणी नहीं होती; इसलिए वाणी, जीव के योग के आधीन नहीं है तथा इच्छा के भी आधीन नहीं है, परन्तु वह स्वतन्त्ररूप से उसके अपने काल में, अपने कारण अपनी योग्यतानुसार परिणमित होती है। प्रश्न 89 - कर्म बन्ध के कारण कौन से हैं ? उत्तर - मिथ्यादर्शनाऽविरतिप्रमादकषाय योगा बन्धहेतवः।
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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