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________________ श्री जैन सिद्धान्त प्रश्नोत्तरमाला 95 वर्तमान के उपरान्त भूत तथा भविष्यत् काल की बातों का परिज्ञान करता है तो केवलीभगवान, अतीत (भूतकाल के), अनागत (भविष्यकाल के) और वर्तमान के समस्त पदार्थों का ग्रहण करें, यह युक्तियुक्त ही है।... यदि केवली भगवान अनन्तानन्त पदार्थों को क्रमपूर्वक जानते तो सम्पूर्ण पदार्थों का साक्षात्कार नहीं होता। अनन्त काल व्यतीत होने पर भी पदार्थों की अनन्त गणना अनन्त ही रहती है। आत्मा की असाधारण निर्मलता होने के कारण एक समय में ही सकल पदार्थों का ग्रहण (ज्ञान) होता है। 'जब ज्ञान एक समय में सम्पूर्ण जगत् या विश्व के तत्त्वों का बोध (ज्ञान) कर चुकेगा, तब वह कार्यहीन हो जाएगा' - ऐसी आशङ्का भी युक्त नहीं है, क्योंकि कालद्रव्य के निमित्त से तथा अगुरुलघु गुण के कारण समस्त वस्तुओं में प्रतिक्षण परिणमन । परिवर्तन होता है। जो कल भविष्यत् था, वह आज वर्तमान बनकर फिर अतीत का रूप धारण करता है; इस प्रकार परिवर्तन का चक्र सदैव चलते रहने के कारण ज्ञेय के परिणमन अनुसार ज्ञान में भी परिणमन होता है। जगत् के जितने पदार्थ हैं, उतनी ही केवलज्ञान की शक्ति या मर्यादा नहीं है। केवलज्ञान अनन्त है। यदि लोक अनन्तगुना भी होता तो वह केवलज्ञान सिन्धु में बिन्दु तुल्य समा जाता... अनन्त केवलज्ञान द्वारा अनन्त जीव तथा अन्त आकाशादि का ग्रहण होने पर भी वे पदार्थ सान्त नहीं होते। अनन्त ज्ञान, अनन्त पदार्थ या पदार्थों को अनन्तरूप से बतलाता है; इस कारण ज्ञेय और ज्ञान की अनन्तता अबाधित रहती है। (महाबन्ध - महाधवला, सिद्धान्त शास्त्र, प्रथम भाग प्रकृति बन्धाधिकार, पृष्ठ - 27, हिन्दी अनुवाद से। धवला पुस्तक, 13, पृष्ठ 346 से 353)
SR No.009453
Book TitleJain Siddhant Prashnottara Mala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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