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प्रकरण तीसरा
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उपरोक्त आधारों से निम्नोक्त मन्तव्य मिथ्या सिद्ध होते हैं. (1) केवली भगवान, भूत और वर्तमान कालवर्ती पर्यायों को ही जानते है और भविष्यत् पर्यायों को वे हों, तब जानते हैं।
(2) सर्वज्ञ भगवान अपेक्षित धर्मों को नहीं जानते ।
(3) केवली भगवान, भूत-भविष्यत् पर्यायों को सामान्यरूप से जानते हैं, किन्तु विशेषरूप से नहीं जानते।
(4) केवली भगवान, भविष्यत् पर्यायों को समग्ररूप से जानते हैं, भिन्न-भिन्नरूप से नहीं जानते ।
(5) ज्ञान, मात्र ज्ञान को ही जानता है ।
(6) सर्वज्ञ के ज्ञान में पदार्थ झलकते हैं, किन्तु भूतकाल तथा भविष्यकाल की पर्यायें स्पष्टरूप से नहीं झलकतीं । - इत्यादि मन्तव्य सर्वज्ञ को अल्पज्ञ मानने समान हैं ।
प्रश्न 85 - शब्द क्या है ? क्या वह आकाश का गुण है ?
उत्तर - शब्द, पुद्गलद्रव्य की स्कन्धरूप पर्याय है, वह आकाश का गुण नहीं है, क्योंकि आकाश तो सदैव अमूर्तिक है और शब्द मूर्तिक है। वह कानों से टकराता है, उसकी आवाजरूप ध्वनिरूप गर्जना होती है। - इस प्रकार शब्द, इन्द्रिय द्वारा ज्ञात होता है, इसलिए वह पुद्गल है ।
जगत् में भाषावर्गणा नाम के पुद्गलों की जाति भरी पड़ी है; वे अपने काल में, अपने कारण स्वयं शब्दरूप परिणमित होते हैं । जिस समय वे पुद्गल, शब्दरूप परिणमित होते हैं, उस समय कोई न कोई जीव या अन्य पदार्थ निमित्त होता है, किन्तु वास्तव में भाषावर्गणा, जीव के कारण परिणमित नहीं होती। जब भाषावर्गणा